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________________ वीशस्वामी, समवसर्या हितकामी रे ॥ गुण ॥ ॥ जीवदयामय बहुगुणधारी, पडिवोहे नारनारी स्थान बारे ॥ गुण ॥ सुरकृत कंचन कमल विराजे, बेग मुनिपति गाजे रे ॥ गुण ॥ २ ॥ हरिषेण नृप गुरु ॥६ ॥ INIआगम जाणी, हरख्यो नत्तम प्राणीरे ॥ गुण ॥ अंबुद ध्वनि शुणिजेम कलापी, नृप श्रयो आनंद व्यापी रे ॥ गु० ॥ ३ ॥ ले राजा निजे सुत लारे, आव्यो बहु परिवारे रे ॥ गुण ॥bal Selमुनिपासे आव्यो मन रागे, विधिशुं पाये लागे रे ॥ गुण॥॥ हुतां कुमरनां जे ऋज कागं, गुरु Naदर्शनश्री नाग रे ॥ गु० ॥ मृग नासे जेम मृगपति आगे, रवि देखी तम नागे रे ॥ गुण ॥ ५॥ अमृतरस जेम सींची काया, नृपसुत तिम सुख पाया रे ॥ गुण ॥ शीतलनाव श्रयो सर्वांगे, मुनि प्रणम्या मनरंगे रे । गु॥६॥ जिन पूजन मुनिवंदन की , दान सुपात्रं दीधुं रे॥ गुण ॥ नावें पुण्यकारज अनुसरतां, तुरत फलें श्च करतारे ॥ गु०॥ ७ ॥ हवे केवली अज्ञान हरेवा, तहने प्रतिबोधेवारे ॥ गुण॥ जेह कर्म इहां आचरिये, तेवा परनव लहियें रे ॥ गुण ॥ वृक्ष तगुं| जेम मूल सिंचाये, फल शाखाए पाये रे ॥गु॥ प्रारंन्यो नपदेश उगहे, मी अमृत पाहे रे salu गु॥७॥ जिस दिवते जिग वेला करिये, जिसवय में आचरिये रे ॥ गुण पातक पुण्य करम नपायें, तिम तस्योदय प्राये रे ॥ गु॥ १० ॥ पापयको दुख तीव्र लही में, मारप्रहार सहीजें रे Soluगुण॥ एहवू जाणी पाप न करिये, पर पीमा परिहरिये रे ॥गुण ॥११॥ पातक कर्म करिने प्राणी, नरक यातना खाणी रे॥ गु॥ तेह अनुनय मनुष्य इहां श्राये, नानामय पीडाये रे ॥ गुण ॥१॥ सर्वप्राणिनी जे करे हिंसा, पापिमांहे प्रशंस्या रे ॥ गु॥ वार घणी जे पामे राजा, नवअंतर ॥६ ॥ Salदुख काम रे॥ गुण ॥१३॥ दान दया संयम जिन सेवा, सदगुरुवचन सुणेवा रे ॥ गुण ॥ तपजपयी पुण्योदय थाये, तेहयो रोग पलाये रे ॥ गुण ॥१५॥ इणि अवसर पूछे नृप जायो Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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