SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीगुरुने मन जायेोरे ॥ गु० ॥ पूर्वजवें शां पातक कीधां, जिणें एहवां दुख दीघां रे ॥ गुण ॥१५॥ यौवन मांहि लह्यो ए जारी, रोगनोग अपहारी रे ॥ गु० ॥ केवल ज्ञानी प्रभु इम बोले, करुणा सायर तोले रे ॥ गु ॥ १६ ॥ पूर्वविदेहविषे गुणवंतो, श्रीपुर रिद्धिसमेतो रे || गु० ॥ पद्मनामें राजेश्वर ढुंतो, सबल अधर्मे खुंतो रे ॥ गु० ॥ १७ ॥ जीवतणी हिंसा ते करतो, नित आहे फरतो रे ॥ गु० ॥ मदिरा मांसतणो आहारी, कुगतितो अधिकारी रे ॥ गु० ॥ १८ ॥ एकदिवस आहेको करवा, प्राण प्राणिना हरवारे ॥ गु० ॥ नीकलतां मारगमां दीगे, प्रतिमाधर | मुनि मीगे रे ॥ ११७ ॥ कुंते करिने कुपित अनामी, मांगा जेम नपामी रे || गुण || साधुजणी नंचो नबाल्यो, परुतो जोंय फाल्यो रे ॥ गुण् ॥ १७ ॥ ति पापि ते मुनिवर मार्यो, परभव दुख न विचारयो रे, ॥ ॥ दुर्गतिगामी जे नर थाये, पाप करीने कमाये रे || गु० ॥ २० ॥ मंत्री शे सामंत विशेषी, प्रौढ पुरुष जे देखी रे ॥ गुण || ऋषिहत्या कीधी इणे पापी, पापें देह संतापी रे || गु० ॥ २१ ॥ एह अन्याय कियो इ राजा, वाज्यां दुर्गति वाजांरे ॥ गु० ॥ एहने पापें सह पीमाये, रावानी परे थाये रे || गु० ॥ २२ ॥ राजथकी तेहने नठामी, काट्यो पुरश्री पामीरे ॥ गु० ॥ पुंडरीक तसु सुत सुख दायी, थाप्यो राज्य सुन्यायीरे ॥ ० ॥ २४ ॥ अति नम्र पुण्य पाप जे कीजें, इहां फल तुरत लहीजें रे ॥ गु० ॥ कहे जीनदर्प सुगो नरनारी, वात एह निरधारी रे o || २ || सर्वगाथा ॥ ८ ॥ ॥ दोहा ॥ अवसर ते अन्यदा, जमतां वनह मोकार । कोप करी पापी कियो, मुनि मारवा विचार ॥ १ ॥ यमरूपी करवाल ग्रही, आव्यो ऋषिनी पास ॥ तेजोलेश्या पतित मुनि, मूकी बाल्यो तास ॥ २ ॥ Jain Educationa International १६ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy