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वीश
स्थान
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तथा ॥ यादृशी नावना यस्य, सिदिलवति तादृशी ॥२॥ मंत्र, तीर्थ, गुरु, देव, स्वाध्याय तथा
औषधनेविषे जेने जेवी नावना होय तेने तेवी सिहि थाय रे ॥२॥ हृष्ट श्रयो सुर सांजली, गुरुने । ॥
पाये लागी रे ॥ निज पानक गयो देवता, समकित मति जागी रे ।। वी ॥ १ ॥ गुरुने कराव्यु पारगुं, बहु नक्ति धरीने रे ॥ एम वात्सल्य करे मुनिनु, चित्त चोऱ्या करीने रे ॥ वी० ॥ १३ ॥sh
संयम आराधी करी, अच्युतं श्रयो देवरे ॥ तपसीनुं करीयुं जेणे, वात्सल्य नितमेव रे ॥ वी Salm १४ ॥ आगामी नवे श्रायसे, महाविदेह मोकारो रे ॥ तीर्थकर पद पामशे, वीरन्नद्र विचारोरे
॥ वी० ॥ १५ ॥ श्रीवीरन मुनिनीपरें, जिनहर्ष आराधो रे ॥ सप्तम थानक नावसुं, शिवसुखी फल साधो रे ॥ वी० ॥ १६ ॥ इति सप्तमस्थानके वीरत्न श्रेष्ठी कथा ॥
॥ दोहा ॥ अथ अष्टम स्थानक कहे, जे सुविवेकी होय ।। क्लिष्ट कर्मनी निर्जरा, जे नर वांठे कोय ॥ १ ॥ सदानुष्ठान संपूर्ण फल, तासु प्रदायक अह ॥ तेह निरंतर नावसुं, ज्ञान उपयोग करेह ॥ २ ॥ वरस कोमी बहु नारकी, कर्म खपावे जेह ॥ ज्ञानी स्वासोवासमां, त्रण गुप्तीसुं तेह ॥ ३ ॥ ठ अठम दुवालस, करे अनाणी शुद्ध ॥ बहु गुण होये एहथी, झाने युक्त विशु ॥४॥ आत्म | तत्व विचारणा, सम्यग्ज्ञान संयोग ॥ दुर्जरकर्मतणो सही, तत्क्षण होय वियोग।।जिनवर नक्त Ralक्रिया विषे, ज्ञानतणो नपयोग ॥ महा निर्जरा कारणे, कयो विशुद्ध त्रियोग ॥ ६ ॥
॥ ढाल पहेली ॥ वेगे पधारो मोहोलथी॥ एदेशी ॥ feel तेह ज्ञान जिनवर कह्यो, मति श्रृंत अवधि विचार ॥ मनपर्याय केवल करी, ए अया पंच प्रकार Slu तेह ॥१॥नेद कह्या मति ज्ञानना, अग्यावीश प्रकार ॥ मन लोयणे टाली करी, व्यंजना-II
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