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स्थान
वीण
॥दोहा॥ कितिनृतपुत्र कहे सुं, मिथ्यात्वी सुरनाम ॥ जीवहिंसामां जे रहे, न करूं तास प्रणाम ॥ १ ॥ ॥३॥ श्रीअरिहंत नमी करी, नमे अवरने कूण ॥ अमृत आस्वादी कवण, पीवा वांछे खूण ॥२॥ दया Ba
धर्म जो तुं धरे, समकित पूर्वक देव ।। तो ताहरुं गौरव करूं, साहमीनी करूं सेव ॥३॥ एहवा वचन सुणी करी, परम शांत श्रयो स्वांत ॥ जाणे अमृत धारसू, सिंच्यो यह महंत ॥ ४॥ विग-5 लितकोपो सुर थयो, मूक्युं दूर मिथ्यात ॥ शुइ सम्यक्त्वदृष्टि भयो, तजी जीवनी घात ॥५॥
॥ ढाल उठी। सीमंधर स्वामी उपदिशे । एदेशी।। राग कालहरो॥ समकित धर्म प्रन्नावथी, यह श्रयो सुप्रसन्नो रे ॥ तेहना अनुचरनी परे, साहाज्य करे एकमन्नो Baरे॥सणाणाअनमी नर तेपण नमे, शीष चरणे नमावे रे । धर्मे सुर सेवा करे, लछी तेमी अलावे sal
रे॥ स ॥२॥ मोटां मंदिर मालियां, धर्मे सेज सुरंगी रे धर्मे नारी पतिव्रता, धर्मे पुत्र सुरंगीरे॥ स॥३॥ धर्मे मयगल मलपता, ऐरावण सरीखा रे ॥ घूमर देता घोमला, मोटी जेहनी हेषा रे ॥ स॥४॥ धर्मे राज्य लहीजियें, धर्मे लील विलासो रे ।। धर्मे जग जश विस्तरे, जेम रविकिरण प्रकाशो रे ॥ स ॥ ५ ॥ हरिविक्रम निजबापर्नु, धर्मे पाम्यो राजो रे ॥ एकातपत्र पृथिवी विषे, कियो धर्म सम्राजो रे॥सणापाले राज्य ललीपरे, हरिविक्रम हरि जेसो रे ॥अन्यायीने आकरो, न्यायी उपर प्रेमो रे ॥ स ॥ ७॥ साध्या सहु सीमालिया, देशाधिप सहु जीत्या रे॥ अनमी राय नमाविया, गुण श्रया सकल विदिता रे ॥ स ॥॥ कलिंगदेशनो राजवी, यमस-RE६३॥ रिखो यमराजो रे ॥ मोटो राय पराक्रमी, सदुमांहे शिरताजो रे॥स ॥१५॥दु सहुने शिर सेहरो, मुजसरिखो नहि कोश् रे॥ में प्रचंड नुजबल करी, लाज सहूनी खोइ रे॥
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