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________________ वीश ॥२३॥ OD XXXXXXX ॥ ४ ॥ धनधन ए मोटो जगमांहे, ए सरिखो नही कोई रे । ए दाता गुणज्ञाता साचो, खुशी थयो गुण जो रे || सां० ॥५॥ पुष्पवृष्टि कीधी शिर नपरे, देव थयो साक्षात् रे || शेठ ती स्तवना करी इणिपरें, धन्यपिता धन्य मात रे ॥ सां॥ ६ ॥ धन्य धन्य तुं सुकृति प्रतिपालक, जिनशासन प्रवतंस रे ॥ प्रवचननी तुं मक्ते रातो, तें नजवाल्यो वंश रे ॥सां० ॥ ७ ॥ श्रावकनामतली सदनक्तें, दीयो अपूरव हार रे || श्नणी तें कीधो साचो, धन्य धन्य तुज अवतार रे ॥ सां० ॥ ८ ॥ लक्ष्मीवंत घणा नर |दी से, तो गाढी संचेरे ॥ तुतो लखमीने वावरतो, किमही हाथ न खंचे रे ॥ सां० ॥ एए ॥ स्तवना इसी परे सुरवर करीनें, रत्नचिंतामणी देइ रे ॥ पाये लागी गयो सुरनुवनें, जइ सुरपतिने कहेश रे | सां० ॥ १० ॥ चिंतामणि पामी सहु संघना, मनना वांवित पूरे रे || इछाहार जिमावे जावे, सहुना दारिद्र्य चूरे रे ॥ सां० ॥ ११ ॥ जिनदत्तशेव करी जव सफलो, रत्नप्रन गुरु पासें रे ॥ पूर्वी पोतानी नवस्थिति इम, चननाणी मुनि जातेरे ॥ सां० ॥ १२ ॥ पहिले ग्रैवेयकें सुर श्राशे, पामीश ऋद्धिमहंतो रे || तिहांथी महाविदेह क्षेत्रमांहे, तुं श्राइश अरिहंतो रे । सां० ॥ १३ ॥ ऋद्धि जोगवी अरिहंत तणि तिहां, पहोचीश मुक्ति मोकाररे ॥ वचन सुणी श्रीगुरुनां एहवां, पाम्यो हर्ष अपार ॥ सां० ॥ १४ ॥ साते खेत्रें उत्तम लखमी, निजहायें शुं वावेरे ॥ शेव करी सफली पामीने, मन शुभभावना जावे रे || सां० ॥ १५ ॥ नारी बहुव्यवहारी साधें, गुरुपासे आदरियो रे ॥ संयम शुद्ध क्रियाशुं पाले, शास्त्रतलो थयो दरियो रे || सां॥ १६ ॥ नक्तिकरी प्रवचननी शकतें, तिहां पा अधिके जावेरे || शुद्ध प्राहार पानादिक प्राणी, आपे सहुने सुहावे रे || सां० ॥ १७ ॥ पदवी तीर्थंकरनी | समता, रसमांहे वश कीधी रे ॥ प्रथमग्रैवेयक पाम्यो मुनिवर, देवतणी रिद्धि सीधी रे ॥ सां॥१८॥ Jain Educo nternational For Personal and Private Use Only SODDDDDDDDDDD स्थान‍ ॥२३॥ wagenbrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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