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वीशण ३॥ नदय कषाय निरोधता, नदय श्रयो करे फोक ॥ तेह कषाय संलोनता,जाणो धरमी लोक ॥ स्थान
सु॥॥कुशल योग नदीरणा, अकुशल योग निरोध ॥ कहीयें जोग संलीनता, चाले करीनुं ॥४॥
शोध ॥ सु॥५॥ विविक्तचर्या स्त्री पशु, पंग नज्जित गम ॥ ब्रह्मचारी नर तिहां वसे, जिहां salन व्यापे काम ॥ सु॥६॥ यतः॥ आरामुजाश्सु, थी पसु पंमय विवज्जि ए गणे ॥ फलयाणं
गहणं, तह नणीअं एसपिजणं ॥१॥ इति बाह्य तपः॥ अस्य फलं ॥ पोरसि चनथ्थ उठे, कान Salकम्मखवंति जंमुणिणो ॥ तं नो नारय जीवा, वास सय सहस्स लख्खेहिं ॥१॥ नमुआ दस
महिं, मुणिणो कम खवंति जे गुत्ता ॥ तं नो वास सयाई, कोमाकोमीहि नरेश्या ॥२॥ Salo नरायाण जीवा, खवंति बहू एहि वास सहस्तेहिं, तं खलु चनथ्थ नो, जीवो ISAIनिरयरह सुहन्नावो ॥३॥ अथान्यंतरं तपः॥ यथा ढाल पूर्वली ॥ पायचित्त विनय करे, या-15 salवच्च साय ॥ ध्यान नस्संग्ग उन्नेदए, अन्यंतर कहिवाय ॥ सु० ॥ ७॥ पातक जेह बेदे al सहू,ते कहीये प्रायवित्त ॥आलोयण आदिक कह्या, दश प्रकार शुन्नचित्त ॥ सु० ॥ ॥
सिद्ध मेश्यए. सुर्यं धम्मेय साह वग्गोय ॥ आयरिय नवजए, पर्वंयणे दंसेणे Raविण ॥१॥ विचरं ता अरिहंतजे, सिदे मुक्तिसु प्रसाद रे।।चैत्यादिक प्रतिमा कही श्रुतसाायिक
आदरे ॥ गाथा ॥ ढाल ॥ धर्म सुचारित्र धर्मते, तेहना साधु आचार ॥ आचारज गबना घणी, त्रीश गुणना धार ॥ सु० ॥ ए ॥ नणे नणावे सिद्धंत जे, कहीये ते नवजाय ॥
॥धा संघे असेस प्रवचन कह्यो, दसणां समेकित पाय ॥ सु॥१०॥ दश प्रकारें विनय सही, करे नक्ति बहुमान ॥ अवर्णवाद बोले नही, जस बोले सुप्रधान ॥ सु० ॥ ॥ ११ ॥ टाले दूर आशातना, विनय कह्यो संखेप ॥ विनय मूल धर्मर्नु, टाले नवना लेप ॥ सु० ॥
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