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सहु जाणे ॥ १४ ॥ रसें त्याग हवे घृत, दूध दही पकवान ॥ गुल तेल उनक, विगय नाखी सुप्राधन ॥ खीरादि करे षट, विगय तणो जे त्याग ॥अनुदिन विकृति न लिये आणा वीतराग ॥१५॥ यतः ॥ दूध दही विगश्न, आहारे । अनिख्खयां ॥ अरश्अ तपो कम्मे, पाव समणुत्ति वुच्च ॥१॥ विगयं विगइनीन, विगगयं जो अनुंज साहु ॥ विग विगय सहावा, विग विगयं बला जो ॥२॥ ढाल ॥ श्रावकजे हादश, व्रतधारी॥शुः समकित धारी, सदगुरु सेवा Stlकारी ॥ तेहने बलवीर्य, सक्तिकेरे अनुसारे ॥ दिन पर्वतणे वि, कृति रस लेवा वारे ॥ १६॥ वीरा
सण आदिक, काय कलेस विचारी॥ते काय कलेस, अशेष संसार निवारी ॥ मन वचन कायानु रोध हुवे गुणकारी ॥ जिनहर्ष मुगतिना, सुखनो ए अधिकारी ॥१७॥
॥दोहा॥ रोग हणाये आसणे, प्राणायामें पाप ॥ प्रत्याहारें मुनिहणे, मन विकार संताप ॥१॥ हवे सुणो संलीनता, तास नेद कह्या चार ॥ इंख्यि कषाय तिम योग वली, विविक्त चरिया धार॥२॥ फरसेंक्ष्यि दोषे करि, विम सूअरमें जाय॥वाघ होय जीहा वसे, घ्राणवसे अहिथाय ॥३॥ लोयण वसें पतंगियो, श्रवण दोष मृग होय ॥ मरण लहे इण कारणे, ए पंचेंशिय जोय ॥ ४ ॥ इंघिय जीपे ते नणी, नत्तम नर मतिमंत ॥ काय केशव्रत नियम सहू, जे विण फोकट हुंत ॥५॥
___ ढाल पांचमी ॥ जंबूजननी श्म नणे॥ एदेशी ॥ | इंडियने वा जे पड्या. जागी तास विपाकाठान्दादिक संदर विषय.नतारेवी बाक॥१॥सण सुण सुंदर प्राणिया, इंघिय वशन पमीश, तपकरी बार प्रकारनु, श्म शिवपंथ लहीश ॥ सुण ॥ ॥२॥राग ष करवा नही, एहने विषे सदीव ॥ए इंश्य संलीनता, जालो नविका जीव ॥ सुण
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