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________________ वीशण चतुर्विध क, आहार त्यागादिक, तेहना नेद अनेक ॥ परपासें नियम, ते प्रतिकर्म करावे ॥ जिम तिम करीने चित्त, चंचल गम रहावे ॥ ६ ॥अथ नणोदरीया, व्यन्नावें बे प्रकार ॥ पहिली उप॥३॥ गरण, नक्त पानादि विचार ॥ उपगरण विना, संयमनो श्राय अन्नाव ॥ दशवैकालिकमां, दाख्यो श्रीजिनन्नाव ॥ ७ ॥ यतः॥ जंपि वळव पायंवा, कंबलं पाय पुत्रणं ॥ तंपि संयम ल ठा, धरंति परिहरंतीय ॥ १ ॥ ढाल पूर्वली ॥ उपगरण तेह, जेहथी पाये नपगार ॥ संयमनी पाये, वृद्धि समृद्धि अपार ।। चनदेश्री अधिका, राखे जो अणगार ॥ अधिकरण जाणीने, करे तेहनो परिहार ॥ ॥७॥ हवे नक्तपान करता निज निज आहार ॥ तेहथी नणो लीजें आहार विचार ॥ बत्रीश कवलें, नरनी कूख नराय, अठावीश कवलें, नारीने तृप्ति थाय ॥ ए॥ यतः॥ कवलाणय परिNaमाणं, कुक्कमि अंम पमाण मित्तंतु ॥ जोवा अविगय वयणो, कवलं निख्खवर वीसथ्यो ॥ १ ॥ ढाल॥ एहथी नणो आ, हार करे नरनार॥ नणोदरी कहीयें, नेद पंच मनधार ॥ ते अष्ठ दुवालस,cal Salसोलसनें, चनवीस ॥ कांश्क नणा, कैतीस कह्या वीसें ॥१०॥नावोनो दरता, कहीये त्याग कषाय ॥ क्रोधादिक करतां, हाण संयमनी श्राय ॥ जिणवयण नावणा, नपर धरीय राग ॥ पर नाव नोंदरियां नाखी श्रीवीतराग ॥ ११ ॥ हवे त्रीजुं तप ते, वृत्ति संक्षेप कहीजे, मुनिनें तो गोचर, अन्निग्रह रूप लहीजें ॥ श्रावकने चनदह, नियम च्यादि संक्षेप ॥ अन्निग्रह व्यं क्षेत्र, कालं नाव निर्लेप ॥ १२ ॥ व्यथी निर्लेपादिक ग्रहवो आहार. आज अमक ऽव्य लेश सार असार ॥ क्षेत्रोनिग्रह वली, निज ग्रामे परग्राम ॥ निश्चय गृह आवलि, नियम घरे लई नाम ॥ १३ ॥ कालोभिग्रह हवे, मुनिवर करे संन्नाल ॥ पहिली बीजी त्री, जी पोरसिने काल ॥ गातो रोतो बे, गे उपराठो देश ॥ इत्यादिक नावा, निग्रह ३॥ Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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