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________________ DDDDDDDDDD निका ॥ अथ सप्तम स्थानके जयंत नृप कथा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥ दवे सातमे थानकें, दुस्तरतर तपकार ॥ कर्म निर्जरा कारणे, करवुं गौरव सार ॥ १ ॥ तपसीनी पूजा करे, विनय प्रणाम सत्कार || निबिरुकर्म ढीलां करे, कृष्ण परें सुविचार ॥२॥ बाह्याभ्यंतर भेदथी, तपना दोय प्रकार || कर्मनिकाचित निर्जरा, जेहथी थाये अपार ॥ ३ ॥ बाह्याभ्यंतर तप अगनि, दीप्यमान शुभाइ || कर्म जस्म बाली करी, दुर्जर पण कामांइ ॥ ४ ॥ नृपवासादिक बाह्यतप, पोढा तास प्रकार || अासानें नगोदरी, वृत्ति संक्षेप विचार ॥ ५ ॥ चोथुं तप रस त्यागनुं, काय कलेस संजोय ॥ बधुं कह्युं संलीता, एह बाह्य तप होय ॥ ६ ॥ धन्य सुपन तुज, धन्य जीवि तोरी प्राय ॥ ए देश ॥ ढाल चोथी ॥ तत्र असणं चारे, आहार तो परित्याग ॥ ते अणसानां बे, भेड़ कह्या वीतराग ॥ इतवेरनें बीजो, यावत कथिक प्रमाण । तत्र पहिलो तेहनो, परिमित काल वखारा ॥ १ ॥ उपवास चतुर्थादिक, षममास पर्यंत ॥ हवे यावत् कथिक, तथा त्रण भेद कहंत ॥ पाद पोपगमन, इंगित मरण सुविचार, नाम नत्तपरिज्ञा, त्रीजो एह विचार ॥ २ ॥ सिंहादिक जयथी, त्रासे नहि व्याघात ।।। पादपनी परें, हलावे नहीं निजगात ॥ चारे आहार, तो करवो परिहार | गीतारथ पाखें, नकरे एह विचार ॥ ३ ॥ हवे बीजो निर्व्याघात, निसुणि अधिकार ॥ चत्तारि वरस तप, करे विचित्र प्रकार ॥ चत्तारि वरस वली, विगय तणो परिहार ॥ इत्यादिक युक्त, करे संलेहा सार ॥ ४ ॥ नवुं बसुं विचरुं, इटली नूंह सीम ॥ अशनादिक चारे, आहारतणो लइ नीम ॥ चाणक्य तलीपरें, परीसह दुःख ही पासे, काया नवर्त्तन, न करावे किणपासें ॥ ५ ॥ दवे नक्त परिज्ञा, त्रिविध Jain Ed International For Personal and Private Use Only ibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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