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________________ लहेतां दोयतुं नंबर फूल ॥१२॥ तद्यथा ॥ अप्रार्थितमेव यथा, समेति दुःखं तथा सुखमपीह ॥ तत्त्यक्त्वा संमोहं, प्रयतध्वं धर्मएव बुधाः॥१॥अर्थ:-जेम प्रार्थना कर्या वगर दुःख आवे ने तेम सख पणा जगतने विषे वगरमाग्यं प्राप्त थाय ने.माटे हे बभिमान पुरुषो।मोहनो त्यागकरी धर्मने विषे प्रयत्न करो ॥१॥रात दिवस मनमांहि जपे, सुहणामांहि पण ते लपे॥ कण वीसारे नहीं कुमार, लोनीने जिम धननंमार ॥१३॥ मनमां पामे परम प्रमोद,युवराजा एम करे विनोद॥मनथी। महेले नहीं लिगार, मंत्राकरनी परे एकवार ॥ १५॥ लीलोद्यान गयो एकदा, मित्र सहित रमवाने मुदा॥पूर्वजन्म वैरी तिणीवार, किणश्क नाकी हो कुमार॥१पालेश् नाख्यो सागर मांहि, नीषण Na SEलोल कलोलअगाहि ॥ क्रिया रहित गुरु प्राणी प्रेम, नव सायरमें पामे जेम ॥ १६ ॥ पाम्यो फलक पुस्योदयकरी, समकित जिम निश्चय नधरी ॥ साते दीवसे पाम्यो पार, आव्यो कुमर नवें अवतार ॥ १७ ॥ अमरदीप तिहांधी आवीया, सुर्यातप फल आस्वादीया ॥ स्वस्थ यो मनमांहि कुमार, आर्या संन्नारी तिणीवार॥१॥सुखें नमंतां त्यां श्रीकार, फलियो दीठो एक सहकार ॥ ते देखी है गहगही, आवीने त्यां बेठो सही ॥ १५ ॥सीतल गया गुहिर गनीर, ततखिण शीतल शरीर ॥ आम्र ताहरा गुण शा नपुं, तुं तो सुरतरु कलियुगतणुं ॥ २० ॥ ताहरां फल तो अतिही रसाल, तुजने चाहे बालगोपाल ॥ ताहरा रसनो अमृतस्वाद, जमतां जमतां परमाह्लाद ॥ २१ ॥ एवा गुण आंबाना कही, कुमर विचारे मनमें सही ॥ कीहां आव्यो हुँ ए कुण गम, जाणुं नहीं हुं एहनुं नाम ॥ २२ ॥ एम चिंते कुमर मन जिसे, कन्या एक निहाली तीसें ॥ रूप अनूप जाणे आगलो, कहे जिनहर्ष हवे सांनलो ॥२३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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