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________________ शि० 12011 2018 CODDDDDDDDDDDDDDD रुली ॥ बिंब सुनतें पूजा करी, घर ग्राव्यो विस्मय मन धरी ॥ ५ ॥ कुंभकार बोलावे नरेंड, प्रापो | मृन्मय करी गजें ॥ ऐरावण सारिखो अंग, हिमाचल आकार उत्तंग || ६ || तरत करी प्राप्यो | कुंजार, अवनीपति हुन असवार || देव शकर्ते चाल्यो असवार, गाजं तो करतो आवाज ॥ ७ ॥ बाहिर चाल्यो रमवा जणी, मृन्मय गजें बेसी पुरधणी ॥ युगाधीश नमवा आवियो, भक्ति करे वा मन जावियो ॥ ८ ॥ जिनवर बिंब नमी पंचांग, पृथिवीपति निज मननें रंग ॥ केलि करे लीला ये राय, सहुजन देखी विस्मय श्राय ॥ ए ॥ देखो माटी गज चालियो, इा राजायें ए शुं कियो ॥ ए तो कोइ न जाणे गूज्ज, इाशुं किम पोहोंचाये फूफ ॥ १० ॥ क्रोध मान सहुना नपशम्या, शेव सामंत यावीनें नम्या ॥ जेहने सानिध्यकारी देव, तो अमनें पण करवी सेव ॥ ११ ॥ ए रुठो नतारे नीर, पहिरावे सहुनें जंजीर ॥ एहनी कुनजर थाये लगार, तो कोइ नहि राखण हार ॥ १२ ॥ जे महोटा कीधा जगदीश, तेहशुं न बने करतां री ॥ एहना पोतां पुण्य अपार, पुण्यें पाम्या राज्य जंकार ॥ १३ ॥ श्रवी नृपनें लागा पाय, कर जोमी कहे सुण महाराय || जे श्रममां दे वी खता, बखस बखस अवनीना पिता ॥ १४ ॥ महोटानें शुं कहियें घणो, अविनय खमजो प्रभु श्रम तणो ।। मानी आएण सहु ततकाल, सुखें राज्य पाले देवपाल ॥ १५ ॥ शेठ पोतानो जे जिएगदत्त, तेहडावी तेजी तुरत ॥ महामात्य पदवी तसु दीध, सहुतणो ते नायक कीध ॥ १६ ॥ शेठ तणो बे मुज उपगार, ते उपगार हि ये संभार ॥ गुण कीधो लोपे नही जेह, महियलमांदे मोटा तेह ॥ १७ ॥ श्रोमोही कीधो नृपगार, मोहोटा माने करी अपार ॥ न्हानो सो याये वरुबीज, पण विस्तार करे तेहीज ॥ १८ ॥ मंत्रीनें शिर थापी जार, पोतें राज्य जोगवे सार ॥ वात न जाणे दुःखनी किसी, हृदयनक्ति जिनवरनी वसी ॥ १५ ॥ जिनदत्त शेठ धैर्य गुण घरी, महामात्य पद पामी करी ॥ करे लोकनें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only स्थान० ॥१णा www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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