________________
जीवा जीव विचार लाल रे ॥ श्रीजिन नक्ति करे सदा, नत्तम धरे अचार विचार लालरे ॥ राण an४॥ अंगज तेहने बे अने, धोरीधर गृह नार लाल रे ॥ धन नामें पहिलो नलो, बीजो धरण विचार लाल रे ॥ रा० ॥ ५॥ धन धर्मी शिर सिहरो, नत्तम गुणे विख्यात लाल रे ॥ पुरमाहेर शोना घणी, नक्त पण पितुमात लाल रे ॥ रा॥६॥धरण शरण पापी तो, जेहनो क्रूर परि
गाम लाल रे॥कर नजर पण तेहनी, जेहनी नहीं पुरमें माम लालरे ॥रा ॥ ७॥ कति कर्प-पत्र salरनी परें, धननी थर विस्तार लाल रे ॥ धरणतणी सघले घणी, अपकीर्ति अंगाल लाल रे । NETराण ॥ ७ ॥ सही न शके दुष्टातमा, करुण रहित स कुइ लाल रे ॥ धन धर्मा धारी प्रते,
हणवा जोवे बिलाल रे ॥ रा॥ए ॥ अवसर कीहां पामे नहीं, हणवा धनने ताम लाल रे॥ Salधरण कहे ना सुणो, वात कहुं अन्निराम लाल रे ॥ रा॥ १० ॥ आपणे वे सरखा श्रया, Nalव्य कमावण जोग लाल रे ॥ परदेशे धन अर्जवा, जईए मेलीनोग लाल रे ॥रा ॥११॥ विश्वत
धन बापर्नु, एटला दिन श्रया त्रात लाल रे ॥ हवे निज खाट्युं खाएं, जगमें लहीएं ख्यात Salलाल रे ॥ रा० ॥१२॥ अखटु बेटो बापने, वालो कदीय न होय लाल रे ॥ घर खुणे पमयो रहे, Halवात न पूजे कोय लाल रे ॥रा ॥ १३॥ परदेशे थाए आपणी, नाग्यानाग्य परीख लाल रे ॥
तेज वधे नही पुरुष, देशांतर विण श्ख लाल रे॥रा ॥ १४ ॥कौटिल्य तास अजाणतो, धन मन Na सरल स्वन्नाव लाल रे ॥ अनुज संघाते चालीयो, देशांतरमा ताव लाल रे रा॥ १५ ॥धनने धरण
कहे इस्युं, तुजने पुर्बु वात लाल रे ॥ सुख संसारे पापश्री, अथवा धर्मश्री ब्रात लाल रे ॥ राosa Nalm१६॥ सुख लहीएं वत्स धर्मथी, एहमें कीस्यो संदेह लाल रे ॥ दहींथकी जेम घृत दुवे, वचन Salकयुं धन एह लाल रे ॥रा ॥ १७ ॥ कारण सौख्य अनेकनु, धर्म एक तुं जाण लाल रे ॥ सर्वाथ
Jain Education International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org