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________________ श ॥६८॥ BODDDXXXXXXX ODDDDDDDDD साधननणी, जीम लक्ष्मी गुणखाण लाल रे || रा० ॥ १८ ॥ श्रहो माहात्म्य धर्मनुं, कोण कहेवा समर्थ लाल रे ॥ जास प्रजावें विश्वमां, इचित पामे अर्थ लाल ॥ रा० ॥ ११७ ॥ पूजाये नर धर्मश्री, काया नीरोग थाय लाल रे ॥ सुरसुख शिवसुख धर्मश्री, धर्में वांछित जोग लाल रे ॥ ॥ २७ ॥ नाइ मिथ्या शुं धरण कहे ते वार ॥ ॥ दी से सुखी अधर्मश्री, इस जिनहर्ष संसार लाल रे ॥रा० ॥ २८ ॥ ॥ दोहा ॥ इम विवाद करतां ग्रकां, मांहोमांहि दोय || नेत्रार्पणनुं पण कीयुं, की यो विचार न कोय ॥ १ ॥ की इक गामे जइ करी, पूबचा लाक अजाण ॥ थाये धर्म अधर्मश्री, प्राणीने सुखजाए ॥ २ ॥ ते नांखे नास्तिकपणे, पापथकी सुख होय || पुरुषलोक जागे नहीं, पुण्य पाप फल कोय ॥३॥ धरण नेत्र धननां ग्रह्यां, न गएयो जात सनेह || पापी निजघर आवियो, वनमां मूकी तेह ॥ ४ ॥ मात पिता आागल कहुँ, व्याघ्र जख्यो धन प्रात ॥ वनमांहे सूतां कां हुं अहीं आव्यो तात ॥ ५ ॥ ॥ ढाल ३ जी ॥ माता दजानी देशी ॥ एवात श्रवणे सुणी रे, मात पिता तेली वार ॥ मोहेवरों धेलां थयां रे, धनविण कुण आधार रे ॥ १ ॥ मन मोहन गारा, मारुं वाहलेशर दुख मेट रे || आवी मानुं दुख मटे रे, ॥मणाथ अचेत धरणी ढली रे || रोवे दुख घरी पाय ॥धन रीसावीने गयो रे कोइ लावो तास मनायरे ॥ म० ॥ २ ॥ वरसे प्रांसु लोयणे रे, जीम पानस जलधार || कण एकपण नवि विसरे रे, धन विण दुःख अपार रे ॥ ० ॥ ३ ॥ धन धन करतां मातने रे, लोजी जीम दीनजाय ॥ रात होये खट मासनी रे, तेतो की मही नवी जाय रे ॥ म० ॥ ४ ॥ नाह विना नारीयें तज्यां रे, अशन वसन शृंगार, बी याचंदतणीपरें रे, थई की मलिन अपार रे || म० ||५|| निशदिन झूरे गोरमी रे, जेम जोडी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only स्थान‍ ॥६॥ www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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