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________________ स्थान ॥१॥ वीश हीये विमासी जोय ॥ ६॥ आराधे एथानकवीश, नर नारीनाव निशदीश, अरिहंतादिक माहे तेह, तीर्थंकर पद लहे गुणगेह ॥ ७ ॥ अरिहंत सिंह पवयंग गुरुं- थेरै, बहुसुय तपसी नही को फेर, एह तणुं वात्सल्य करेह, ज्ञानंतणो नपयोग धरेद ॥ 6 ॥ दंसणे विणयं । आवश्यक- एह, शील व्रतेशुं धरीये नेह, क्षण कण धरीयें मन शुलध्यान शुद्ध सुपौत्र- दीजें दान ॥ ए ॥ वैय्यावंच- सुसंघ, समाँधि, ज्ञान अपूव ग्रहण अप्याधि | Pal श्रुतैनी नक्ति सुसक्तें करे, प्रवचन- दीपावे बहुपरे ॥ १० ॥ वीशे थानक सेवे, काय, एहथी जिनवर पदवी प्राय ॥ मुक्ति तणां सुख, पामे सही, एहवी वात जिनेश्वर कही। Isalu ११ ॥ प्रथम चरम जिनवर नासीया, ए थानक सघलां फासीया ॥ मज्कीम बावीशे sal जिनवरें, एक दोई त्रण सघला चरे॥१२ ॥नव्यजीव नपकारह लणी, साधन करवा स्वारथ || तणी, प्रगट देखामया ए दृष्टांत, तास स्वरूप कहुं गुणवंत ॥१३ ॥धर्म जिनेश्वर दो प्रकार, साधु stallश्रावकनो कटो विचार ॥ समकित शुद्धन्नणी निसदीस, आराधवा थानक वीस ॥१४॥ समकित शक्रियाफल होय. जिनशासनमें बोल्यं जोय. समकित कान सहित गण खाण. एहथी बीजां कष्ट अनाण ॥ १५ ॥ दान शील तप पूजा जेह, तीरथ यात्रा दया करेह, श्रावकपणुं व्रतपणुं सुन्नेय, Ival समकित मूल महाफल देय, ॥ १६ ॥ सघलेही थानकें संकेत, सम्यग् दर्शन निर्मल हेत ॥ करवी ISBI जिनवर पूजा त्रिकाल, अई जिनहर्ष प्रथम ए ढाल ॥१७॥ ___ अथ प्रथम श्रीअरिहंतपद स्थानक प्रारंन्नः॥ दोहा॥ त्रण्यकाल पूजे जिको, विगत दोष जिनराय, ते सीजे नव तीसरे, सात आठ न लंघाय ॥१॥ स ॥१॥ Jain EMISOS nternational For Personal and Private Use Only wwdanimandiry.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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