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________________ तेणे देवता, तस्यादेशो कार॥ वैरिवृंदनां बलहरे, ध्यान करे तेणीवार ॥ ४ ॥ ॐकार माहात्म्यथी, विद्या पूरण जाप ॥ शब नछि पहियो वली, राजा पुण्यप्रताप ॥५॥ ढाल त्रीजी॥ नाचे इं६ आनदशुं इंशणीगावे गीतो रे ॥ एदेशी॥ पुण्य अधिक जग जाणिये, पुण्य अरियण दयथायो रे ॥ पुण्ये धन संपति मले, पुण्य सकल विद्यायो रे॥ पु॥१॥राजा पुण्य प्रत्नावथी, शब पमियो तिणिवारो रे ॥ योगी मनमां चिंतवे, विधि भइ न्यून विचारो रे ॥ पुण् ॥॥ फरीने जप मांझीयो, वली परियो तिमहिंजो रे ॥ लोटे ते ध्यानश्री, वलीवली थाये खीजो रे ॥ पुण्॥३॥ योगी नृपनें मारवा, विद्यादेवी ध्याये रे ॥ जोगी मांहे नाखीयो, अग्नि तणे कुंमे साही रे॥ पुण् ॥४॥ योगी सोवन पुरिसो, बलीथयो तत कालो रे ॥ सिद्धि न हुवे परशेहथी, पुण्यप्रबल नूपालो रे ॥ पु० ॥५॥ यतः ॥ द्रुांति ये महावात्मेन्यो, द्रुह्यंत्यात्मनएवते।सूर्येदुशेहकज्ञहुः,शीर्षशेषोऽनवन्न किं ॥१॥ अर्थः-जेओ महात्माओनो Na वह करे तेयोपोताना आत्मानोजह करे सूर्यनाशेहकरनार राहने मस्तक मात्रज रद्य नहि शुः “सारांश परशेह करनार आत्मशेहि . राहुने सूर्यचंनो शेह करवाथी धडजवाबाद माथु बाकी रा"ढालाहर्ष विषाद लढ्या बिन्हे, राजाएं मनमांहे रे॥अहोअहो विद्यातणो, जुओ प्रन्नाव नमा रे॥ पु०॥६॥ गुप्तगम ले थापियो, कनकपुरुष राजानो रे ॥ निज मंदिर आवी करी, सूतो निज्ञवानो रे॥ पु॥७॥ प्रातसमे मंत्रीनणी, राय कही सहु वातो रे ॥ स्वर्णपुरुष घर आणियो, अक्षय माल कहातो रे ॥ पुण् ॥ ७॥ वसुधा वसुधारा हवे, वरसे वसुधा ईशो रे ॥ दारिश्य ताप सहतणा, टाले धरीय जगीशो रे ॥ पु ए॥ श्रीजिनचैत्य कराविया, खरच्युं व्य अपारो थापी प्रतिमा कनकनी, समतानो आधारो रे ॥ पुण्॥१०॥ पवित्र हृदय पुण्येंकरी, पाखीनो उपवासो Jain Educatiemational For Personal and Private Use Only www.janiellarary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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