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________________ वीरे॥राय करी सूतो सुखें, दीगे सुपन विलासो रे ॥ पु०११॥ किणहिक नगरीमा वसे, कला ISElकुशल बहु सेवी रे॥ करे तपस्या तापसी, वंकुली रत्नादेवी रे ॥ पु० ॥१॥ ते पासें नृप कन्यका ॥६॥ Salएक विवेक सुजाणो रे ॥ शास्त्र पाठ नद्यम करे, शीखे नाग विनायो रे ॥ पु० ॥ १३॥ रूपअ-sal वाधिक रलियामगुं, सुरकन्या अवतारो रे ॥ घमी विधिना लेकरी, तीन नुवनना सारो रे ॥ पु Salm१५ ॥ जे नर तेहने परणशे, तेहy नाग्यविशाल रे ॥ तीन वरग तेहनें हुशे, म चिंते नूपाल रे ॥ पु॥१५॥ जाग्यो देखी एहवं, मंत्रीने तेमायो रे ॥ सहु विरतांत सपनतो,राजायें संन्नलायो sal aरे ॥ पु ॥ १६ ॥ पाणिग्रहण नत्सुक थयो, मंत्री कहे सुण रायो रे ।। शो प्रत्यय सुपनें लही, वस्तु-Nal तणो न नपायो रे ॥ पु०॥ १७ ॥ वातपित्त कफ चिंतथी, सुण्यो निष्फल श्राय रे ॥ मूरख तापसनी कथा, कहुँ जिनहर्ष सुणाय रे ॥ पुण् ॥१०॥ ॥दोहा॥ Nal एक धनपुर नामे नलो, गाम समृद्धि विशाल ।। तपसी एक तापस वसे, करे तपस्या बाल ॥१॥ Salसिंह केसरीया लाडवा, मग्नरा नरपुर ॥ सुपनमांहे दीग तेणें, मन हरषित थयो नूर ॥ ३ ॥ नव्यो प्रात श्रयो जिसे, वदन कमल विकसंत ॥ शिष्य वर्ग तेमी कहे, मूरखमांहे महंत ॥ ३ ॥ ग्रामलोक तेमी करी, लावो सहु समुदाय ॥नोजन सहुनें आपशु, लावो ते बोलाय ॥४॥ शिष्य कहे तापस नणी, अहो तपोधन एह ॥ लोक सहुआव्या मली,योनोजन सुसनेह ॥५॥साग्रमी ॥२६॥ मनोजन तणी, मठ दीसे नही काय ॥ गुरुने ते नाखेश्श्युं, लोक रहे के जाय ॥ ६ ॥ नरयो अ मठ मोदकें, दीग सुपनामांहिं॥ करीश नक्तितिणे मोदकें, शामाटे ते जाय ॥ ७॥ एह वात लोकें सुणी, तापसनी तेशिवार ॥ मांदोमांहे हसता सहू, कुधित गया घरबार ॥७॥ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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