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________________ वीश Ա 000 रे, लोक तो आधार रे ॥ ज० ॥ ४ ॥ नूप आदेशें अन्यदा रे, जीम नरेसर पास ॥ आव्यो ते चंपापुरी रे, राजकाजें उल्लास रे ॥ ज० ॥ ५ ॥ मंत्रीश्वर नगरी तणी रे, शोभा अतिशयवंत ॥ जोतो वासुपूज्य देहरे रे, आव्यो हर्षधरंत रे ॥ ज० ॥ ६ ॥ जिनवरनी स्तवना करी रे, हृदयधरी आनंद ॥ पुष्य तणे प्रयोगं मख्या रे, श्रीधर्मघोष मुणिदं रे ॥ ज० ॥ ७ ॥ सुंदर सूरति जेहनी रे, रूपें जाणे अनंग || देखी हग सीतल दुवे रे, याये प्रफुल्लित अंग रे ॥ ज० ॥ ८ ॥ मूरति जाणे धर्मनी रे, हरषित थयो मंत्रीश ॥ विनय सहित प्रणमी करी रे, बेगे घरीय जगीश रे ॥ ज० ॥ जाएगी तेहनी योग्यता रे, ज्ञानतणो नृपयोग ॥ ते आगल दीये देशना रे, जहथी टले शोक रे ॥ ज० ॥ १० ॥ इणि संसार कंतारमें रे, जमतां जे थया श्रांत ॥ धर्म अमृतसर सारिखो रे, कर्म लाघवी लहंत रे ॥ ज० ॥ ११ ॥ जीवतणी पाले दया रे, परम धरम कह्यो तेम ॥ प्राणीनें निज प्राणथी रे, बीजो प्रिय नही जेम रे ॥ ज० ॥ १२ ॥ एक राख्यो प्राणीनें जेरों रे, त्रिभुवन राख्यो तेण । एक हस्यो त्रिभुवन हयो रे, जंतु नहणवा केण रे ॥ ॥ १३ ॥ सूक्ष्म बादर एकेंडीनां रे, पंचिंड़ियना दोय ॥ संज्ञी असंज्ञी मेलीयें रे, द्वित्रि चनरिंदिय जोय रे ॥ ज० ॥ १४ पर्यापता अपर्यापता रे, करतां ए सदु श्राय ॥ चन्द्स थानक जीवनां रे, एह कह्यां जिनराय रे ॥ ज० ॥ १५ ॥ ए सहनी रक्षा करे रे, धरमीजे नर होय ॥ निज प्रातम पर आतमा रे, फेर न जाणे कोय रे ॥ ज० ॥ १६ ॥ परशासनेऽय्युक्तं ॥ यत्र जीवः शिवस्तत्र, न नेदः शिवजीवयोः ॥ न हिंस्यात्सर्वभूतानि, शिवनक्तिसमुत्सुकः ॥ १ ॥ परशासनने विषे कह्युं बे. अर्थ:-- ज्यांजीव बे त्यां शिव बे शिवने अनो जीवनो भेद नथी. तेमाटे शिवनी भक्ति कर वामां नत्सुक थएला माणसे सर्वप्रालियोनी हिंसा करवी नहि ॥ ढाल || जीवदयाथी आतमा रे, Jain Educand international For Personal and Private Use Only OOOOOO स्थान ॥१५॥ rary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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