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शिवपुरी ॥ १२ ॥ ते कारण यात्रा तेहनी, परम पवित्री दुवे देहनी ॥ मुक्ति निलय बे एहनुं नाम, पाप जाये करतां परणाम ॥ १३ ॥ यात्रा सहस्र पुण्यजे होय, अन्यतीर्थ गयाथी जोय ॥ शत्रुंजयनी यात्रा एक, पुण्य तेटलो धरी विवेक ॥ १४ ॥ पगले पगले जाये ताप, नवकोमीनां कीधां पाप ॥ पुंमरीकनी यात्रा करे, विधिशुं जे मानव संचरे ॥ १५ ॥ कोमी वरस जे तीर्थ अन्यत्र, दान दया तप प्रमुख विचित्र ॥ प्राणी बांधे जे सत्कर्म, शत्रुंजय ते मुहूर्त्त सुधर्म ॥ १५ ॥ नमो सिद्धाएं जपीयें जाप, सिद्धपदवी आपे श्रव्याप ॥ कहे जिनहर्ष सिधनुं ध्यान, करे दोय सहस्र अनुमान ॥ १७ ॥ सर्वगाथा ॥ २२ ॥
दोहा ॥
मूकाये जव सहस्रथी, सिद्धनणी नमस्कार ॥ जावें जेद करे नवि, बोधिलान विस्तार ॥ १ ॥ हवे एह थानक करी, सिनक्ति प्रांत ॥ विधि पामी गुरु मुखथकी, सम्यग दृष्टि प्रशांत ॥ २ ॥ सिद्धस्थानकनें विषे, श्रीजिनबिंबस्वरूप ॥ मांगीनें अरचे स्तवे, हस्ती पाल जेम नूप ॥ ॥ ए यानक प्राराधतां तीर्थकृत्कर्म दुर्द्धन ॥ ते पामें त्रीजे जवे, अरिहंत रिद्धि सुलन ॥ ४ ॥ ढाल बीजी ॥ कपुर होये प्रति नजलो रे ए देशी ॥
इंजिनरत सुखेत्रमां रे, सांकेत पाटल नाम | प्रत्यक्ष सुरपुर सारिखुं रे, जाणे लखम । धाम रे ॥ १ ॥ नविय सेवो थानक एह || बीजा थानकनी कथा रे, सांजलजो घरी नेह रे न ए आंकली. राजकरे राजा तिहां रे, हस्तिपाल नरें || प्रभुता जेहनी प्रतिघणी रे, तेजें जाणे सुरेंद्र रें न २ ॥ सुजस दसे दिसे विस्तरयो रे, रविकर जेम जगमांहि ॥ न्यायें निज पाले प्रजा रे, अरि मूक्या अवगाहि रे ज० ॥ ३ ॥ चैत्र नामें मंत्री सरू रे, बुद्धि तो नंगार ॥ दान मानघर जेहनें
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