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________________ XXXXXXXXXXXXXXX ॥ दोहा ॥ वली विशेषं श्रुतज्ञाननी, जक्ति वांबे ए राय ॥ राज्य ज्येष्ट सुत सूरने, दीधुं करी सुपसाय ॥ १ ॥ रत्नचूक राजा ग्रह्यो, अमरचंद गुरुपास ॥ संयममार्ग साधनो, बेदेवा नवपास ॥ २ ॥ अंग इग्यार जण्या नजय, सूत्र अर्थ ऋषिराय ॥ निर्मल गीतारथ थया, दर्पण जिम दीपाय ॥ ३ ॥ श्रुतनी भक्ति सुशक्तिश्री, करवी जावज्जीव॥ की यो अभिग्रह राज ऋषि, करि दृढ हृदय श्रतीव ॥४॥ श्रुतधर जे वलि श्रुतधरी, पाठक श्रुतना जेह ॥ जाव शुद्ध बहुमानसुं, भक्ति करे धरि नेह ॥ ५ ॥ अन्नपान वरौषधें, भक्ति करे निश दीस ॥ काल गयो इम केटलो, मुदित चित्त सुजगीस ॥ ६ ॥ ॥ ढाल ५ मी ॥ सासु काठाहे गन पीसावा, आपण जास मालवे || सोनारी नये ॥ ए देशी ॥ अन्य दिवस गुरुपासे, श्रुतनक्ति जावित प्रातमा । श्रुतनक्ति करे, आव्या भारती पत्तनमांहे, पंचईदिय गुप्तातमा ॥ श्रु० ॥ १ ॥ देवशक्ति करी विप्ररूप, कौतुक जोवा कारणे ॥ श्रु० ॥ सुरस्वामी इशानें, आाव्या साधु परीक्षणें ॥ श्रु० ॥ २ ॥ सुरपति कहे सांजल साधु, प्राकृत संस्कृत तेहणे ॥ श्रु० ॥ जैनागम पाठ प्रभाव, भणतां दुखपमे घणे ॥ श्रु० ॥ ३ ॥ जाषा संस्कृत शास्त्र प्रमाण, देव भाषा सुखकारिणी ॥ श्रु० ॥ जो वांबे प्रात्मकल्याण, तो ए ना दुखवारणी ॥ श्रु० ॥ ४ ॥ शुणी वचन हस्या ऋषिराय, हइमामांहे नवि धर्या ॥ श्रु० ॥ श्रुतनक्ति न मुकी तेरा, बहुदिन यादरचा ॥ श्रु० ॥ ५ ॥ समता रस गर्जित वाच, तेहजणी मुनि नचरे ॥ श्रु० ॥ कां पाप नराये - रे विप्रं, जिन आगम निंदा करे ॥ श्रु ॥ ६ ॥ श्राय बंध श्राय वलि मूक, हीन योनि दुर्गति लहे ॥ श्रु० बोले सिद्धांतावर्ण्यवाद, ते प्राणी बहु दुखसहे ॥ श्रु० ॥ ७ ॥ आशातना जिननी जेद, तास वचन Jain Edu international For Personal and Private Use Only gantilelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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