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________________ ए पण श्रावकलोकने, लानन्नणी बहु होय ॥ ज्ञानी गीतारथ गुरु, शास्त्रे फल कडं जोय ॥४॥ लाख लाख दिनप्रते दिये, सोवन खांमी कोय ॥ तासपुण्य नहि तेटलु, सामायिक फल होय ॥५॥ ॥ ढाल २ जी ॥ विलसे ऋद्धि समृद्धि मिले ॥ए देशी॥ सामायिक कर तुं समन्नावे, श्रावक एक मुहूर्त मन लावे ॥ एटला पल्योपमर्नु बांधे, नरनारी आव सांधे ॥१॥ कोमी वाणु लख गुण सही, पण वीस सहस नवसय सही ॥ पणवीस पल्य अम नाग करो, नपरे तेना तीन नाग धरो ॥॥ हवे चोवीश जिणंद नूपो, अन्वय नामोत्कीनरूपो ॥ नामस्तव ए पण बहु माने, पद संपद नपयोगे ध्याने ॥ ३॥ सार्थक दोए संध्याकाले नणे, तन मन श्रिर करि हित नाव घणे ॥ मोटो सुकृतोदय नणी पहुंचे, जगतमांहे तेहनी सोहन वचे ॥ ४ ॥ सूत्र अर्थ हृदय नपयोग धरी, चनवीसथो मनशुहिकरी ॥ जे नणे जतनशुं कर्म Salवहे, तीर्थंकर पदवि ते लहे ॥ ५ ॥ अथ वंदन नेद विधासुं गृहे, फिटा थोन्नं हादशावर्त कहे ॥ मस्तक नमणादिक प्रथमगणो, बीजे दोश् खमासमणो नमणो ॥ ६॥ त्रीजु वंदन बिहुने जाणो, तिहां प्रथम सयल संघने आगो ॥ बीजु वंदन श्रीसाधुनणी, त्रीजु पदधारक सुगुणनणी ॥ ७ ॥ अथ हादशावर्त वंदन क्रम, गुर्वादिकने करवा समकम ॥ ए पंच नामादि वाविशारे, चारशे बाणु शुद्ध नेद चारे ॥ ७ ॥ मन शुई श्रीजिन आणगृही, क्लिष्टकर्म निर्जरा होइ सही॥ नीच गोत्र करे कृय कणमांहे, नच्चैर्गोत्र बंधे नगंहे॥ ए॥ यतः Seदण एणनंतेजीवे, किंऊणयई वंदणएणं नीया गोडं कम्म खवे ॥ नच्या गोमं निबंध सोहग्गं salचअप्पमिहयं आणाफलं चिघते दाहिनावं च गंजणप३ ॥ १॥ सत्यक् सुप्रकारे सुमति घणी, वंदण कहियें गुणवंतनणी ॥ ते पामे सुख बहु खणखणमे, हरी परीकय कर्म करी ऋणमे Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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