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________________ DDDDDDDXXXXXXXXXXXXXXXXXXX धरी, दिल तरी, पूजा चरण सोहामणां ए ॥ वात सुगो तुमनें कहुं, पद्मावती नगरी रहुँ, नमहुँ, कौतुक जोवा ते घणांए ॥ ३ ॥ चरणकमल नमवा जली, रन वन मुंइ लंघी धणी, तुमतली, सेवा करवा आवियोए । उत्तमनर जाली करी, वे तापसी हितधरी, बहुपरि, जोजन सरस करावी - योए ॥ ४ ॥ जोजन कीधानंतरें, नयानें एक तरुवरें, सुख नरें, तास वचन पामी करी ए ॥ रतनपट्टिका नपरें, जइ सूतो निश करे, अवसरे, ग्राव्यो तिहां एक ननचरी ए ॥ ५ ॥ नृपनें सूतो निरखीयो, सूरति देखी हरखीयो, परखीयो, ए मनमथसमो नर हीए ॥ जो जोशे मुज कामिनी, एहनी कांति सोहामिणी, रागिणी एहतली श्रासे सहीए ॥ ६ ॥ एकजमी बांधी करें, रूपनारीनुं ते करे, इणि परें, ते कामकरी आागल गयोए || देखो काम विटंबणा, शुं नकरे कामीजला, जामला, जेही काम दूरें रह्यो ए ॥ ७ ॥ नारी के आवीए, देखी कांति सोहावीए, जावीए, मनमां एम विचारणाए । जो मुज कंत निहालसे, प्रेम सही मुज टालशे, पालशे, एहशुं सुख नरनवतां ॥ ८ ॥ वली तेणे बांधी औषधी, पुरुष रूपथ्र्यो सूधी, मनवधी, प्रीति घणी आगल चलीए ॥ जाग्यो राजा तेणेसमें, जमी निहाली अनुक्रमें, मनरमे, पाणी पद्म वे अटकलीए ॥ ए ॥ मनमां प्रचरिज पामीए, ते नरना स्वामीए, जामीए, ए कारण दीसे किसुंए || पुरुष रूप जडी बोमेए, पाणिथकी मनकोमेए, मुखमोने, वनिताकार दुवे तिसोए ॥ १० ॥ वाम हाथथी बीजीए, सुंदर रूप निरखीजीए, रीजीए, प्रातमरूप निहालीए | हरख लहयो मनमां घणो, फल्यो मनोरथ मनतो, आपणो, पूर्व पुण्य संभालीयोए ॥ ११ ॥ गुप्तगमें जमी राखी, नृपकन्यानो अभिलाखी, नवि दाखी, किणहीज आागल वातमीए ॥ हवे तापसी पासें ए, आव्यो राय नल्लासें ए, आए, गमवा तिहांकले रातकीए ॥ १३ ॥ रूप भूपनुं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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