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हत्याना पाप ॥ यौवनमांहे शेषथी रे, ए लह्या रोग संताप ॥ च॥१२॥ अन्य नणी जे दुख Salदिए रे, निश्चें दुख लहे तेह ॥ तेमाटे दुख केहने रे, दीजें नहि गुणगेह ॥ च० ॥१३॥ जे दीजें ते
पामिएं रे, लगिएं वाव्युं तेह ॥ दुख दीधां दुख पामियें रे, तेमें किशो संदेह ॥ च ॥१५॥ तत्व
शुश्रषाए करी रे, मुनिवंदन सुविशाल ॥ शेष कर्म निःशेषथी रे, कय पाम्यां तत्काल ॥ चण| salu१५॥ कर्मतणी अणुवर्गणारे, वीण असंख्या थाय ॥ तत्वशुश्रूषा नव्यने रे, नावकी कहेवाय
च॥१६॥ तत्वशश्रषाने विषेरे, जेहनो शनपरिणाम ॥ क्लिष्टकर्मनी वर्गणारे, कण एकमें खपे ताम ॥ च ॥ १७ ॥ मिथ्यात्व मोहनी कर्मनो रे, क्योपशम थयो तास ॥ जिनन्नाषित धर्मने विषे रे, पाम्यो रुचि नल्लास ॥ च॥१७॥ गुरु रत्नाकरथी तिहां रे, सम्यक रत्न लहंत ॥ हरिRaविक्रम नृपशुं हिये रे, परम मोद वहंत ॥ च ॥ १७॥ गुणदोषादि समकीतना रे, बोधन्नणीsa
गुरुराय ॥ देवा मांमी देशना रे, अमृतसम सुखदाय ॥ च० ॥ २०॥ बेप्रकारे जिन NA धर्मनुं रे, नांख्युं समकितमूल ॥ तीर्थंकर पदवी दीजीएं रे, मोद करण अनुकूल ॥ च ॥१॥ नमी नमी नवसमुश्मा रे, अनंत पुद्गलावर्न ॥ शेष कोमा कोमी अधिनी रे, स्थिति करी अष्टा
प्रवर्ग । च० ॥ २२ ॥ अर्ध पुजलावर्नमें रे, शेष नवस्थिति आण ॥ समाकत पाम Salकीधे ग्रंथिभेद जाण ॥ च ॥ २३॥ तीहां अनेकविधि कह्यो रे, गुण अनंत शोनंत ॥ दायक संपद Nalमोदनो रे, कायक आदि कहंत ॥ च ॥श्था इत्यादिक सुणि देशनारे, हरख्यो हृदय कुमार ॥ कहे जीनहर्ष सम्यक्त्वना रे, संन्नलाव्या अतिचार ॥ च० ॥ २५ ॥ सर्वगाथा ॥ ११ ॥
॥दोहा॥ घरे आव्या गुरु वांदिने, राजा प्रजा कुमार ॥ पाले समकित निर्मलुं, अविचल सुखदातार ॥ १॥
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