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________________ वीप स्थान तास विशु विधित्सया, करे धर्मनां कृत्य ॥ नक्ति करे जिनराजनी, नलट नावें नित्य ॥ २ ॥ मुनिवर वंदे नावसूं, करे तीर्थनी जात्र ॥ प्राणिनी करुणा करे, आपे दान सुपात्र ॥३॥ स्वामी-1 ॥शा वात्सल्य साचवे, खरचे द्रव्य सुगम ॥श्म नदारवृत्तें करी, समकित निर्मल पाम ॥४॥ यद धनंalजय अन्यदा, महिष कुमरनीपास ॥ मागे पण ते नवि दिए, जीनधर्मी गुणरास ॥५॥ ॥ ढाल ए मी॥ पंचनरतारी नारी द्रुपदी रे ॥ए देशी॥ | एकदिन वनवासी जती रे, वांदी वल्यो कुमार रे ॥ निजआवासें आवतो रे, यहें दीगे तेवार रे॥ एक० ॥१॥ दुर्जन जिम दुष्टातमा रे, देखी जाग्यो क्रोध रे ॥ अग्नितणीपरे धमधम्यो रे, जाग्यो । KI वैर विरोध रे॥एक ॥२॥ मुजर नपामी करी रे, आव्यो मारण तामरे ।। कुमर सुकृत नल्लासथी रे, नन्नो रह्यो तिण गम रे॥ एक ॥३॥ कुमरनणी कहे पापियो रे, दे मुजने सैरनेय रे ॥ नहि तो sal तुजने मारशुं रे, बोल्यो हिये खलेय रे ॥ एक ॥॥ गयवर दशन तणी परे रे, नत्तम नरना बोल रे ॥ बोल्यो जे पाले सही रे, ते जगमांहि अमोल रे ॥ एक ॥५॥ ॥कवित्त ॥ चाल उप्पयनी पूर्व दिशा पालटे, अरक नगे पश्चिम दिशि, सदा काल कलियुगें, अग्निज्वाला वरसे शशि ॥ सायर तजे मरजाद, अमल गिरि होय चलाचल, पावक शीतल नजे, पुहवी जो जाय रसातल ॥ नाग धणे कदा,धरा नपर नीचे गया. जिनहर्ष तोहि नव पालटे, नत्तम पुरुष बोख्या Salवयण ॥ १ ॥ हजु श्श नव तजे, कंठ राख्युं हालाहल, हजू धरा निजपीठ, धरे कूरमा महाबली हजु समुराखियो, पेटमंही वमवानल ॥ हजू पंगू सारथी, तास नह गेमे पिंगल ॥ जलधर नारी ना तजे, तमित महा दुष्ट हजु नजे ॥ जीनहर्ष तेम सजन जिके, निज अंगीकृत ॥६ ॥ Jain Education Internabonal For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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