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समकित पालो रे, जिन दर्ष कहे संभालो रे ॥ १७ ॥ सर्व गाथा ॥ २२७ ॥ इति नवमस्थानके दरिविक्रम नृपकथा ॥
॥ दोहा ॥
हवे दसमा थानक विषे, सुविवेकी नर जेह ॥ अरिहंतादिक तेर पद, तासविषे घरी नेह ॥ १ ॥ सर्व श्रेयनुं मूलबे, करवो विनय विशेष || पंचभेद सामान्यथी, तेह कर्तुं सुविवेक ॥ २ ॥ लोकोपचार पहिलो विनय, अर्थ निमित्त काम देत ॥ नव्य विनय तिम मोनो, विनय पंचगुण खेत ॥ ३ ॥ आदर अंजली जोगवी, आसन बेसरा दान ॥ विनवें प्रति पूजा करे, लोकोपचार समान ॥ ४ ॥ मिश्रवचन बंदें चलण, वितरण व्युत्थान ॥ अंजली आसन आपवुं, अर्थ विनय सुप्रधान ॥ ५ ॥ काम विनयन्नव्य इलिपरें, अनुक्रमे जाणो एह || मोक्ष विनय पण पंचधा, जांखुं सुराजो तेह ॥ ६ ॥ ढाल १ ॥ बखमानी देशी ॥ दंसण नाणे चरीत्रनो, तप उपचार करी ते ॥ सुरंगा सांजलो | मुख्य विनय ए जावो, पंच प्रकारे एम ॥ सु० ॥ १ ॥ व्य तला सदु नाव जे, जाख्या श्री जगवंत || सु० ॥ ते साचा करी सद्द, दंसण विनय कहंत ॥ सु० ॥ ॥ शीखे ज्ञान नणे गुणे, ज्ञाने कार्य करे ॥ सु०॥ ज्ञानी नवो बांधे नहीं, ज्ञान विनये कर्यो य ॥ सु० ॥ ३ ॥ आठ कर्म चय जेदथी, रिक्त करे जयमान ॥ सु० ॥ अन्य नवो बांधे नहीं, चारित्र विनय वखारा || सु० ॥ ४ ॥ तपें करी तम अप हरे, निज प्रातमने धीर ॥ सु० ॥ स्वर्ग मोक्ष सन्मुख करे, तप विनंति कहे वीर ॥ सु० ॥ ५ ॥ दवे नपचारे क्रमण दुवे, दुविध विनय संखेप ॥ सु० ॥ प्रतिरुप योगे प्रयुंजला, श्रणा सायल निर्लेप || सु० ॥ ६ ॥ प्रतिरुप विनय निश्चय करी, कायवचन मन योग ॥ सु०॥ अष्टचार दो नेदशुं
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