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________________ वीशतपवीरादि सुलन्न।बीजापण वीराघणाजी, ब्रह्मवीरा दुर्लन्नासाण॥१णायतः॥अह्नाय वह्नौ बहवोवि- स्थानः शंति, शस्त्रैः स्वगात्राणि विदारयति ॥ कृछ्राणि चित्राणि समाचरंति,मारारिवीरं विरलाजयंति ॥१॥ nanमत्तेमकुंनदलने नुवि संति शूराः, केऽपि प्रचंममृगराज वधे प्रचंमाः ॥ किंतु ब्रवीमि नवतां बलि नः पुरस्तात्, कंदर्पदर्पदलने विरला मनुष्याः ॥२॥ अर्थ-घणाएक एकदम अग्मिनेविषे प्रवेश करे । घणाएक शस्त्रोवमे पोताना शरीरनुं विदारण करे , अने केटेलाएक विचित्र प्रकारनां व्रतो । Nal(कादितप ) नुं सारीरीते आचरण करे परंतुकोश्क विरलाज कामदेवरूपी शूरा शत्रुने जीति शकेले ॥ १ ॥ मदोन्मत्त एवा हाथीना गंमस्थलने फाडवामां शूरवीर पृथ्वीने विषे घणाअने केटलाएक प्रचंड सिंहना वधनेविषे पण सरसाइ धरावे तमारी पासे वधारे बलवान् शुं कडं परंतु कामदेवना गर्वनं दलन करवामां विरलाज मनष्यो ॥॥ नाकी श्रीगरुने नमीजी. पूरे विस्मित होय ॥शीललीला जिन मुनिवरेंजी, शुं फल पाम्युं लोय ॥ सा ॥ ॥ गुरु नांखे सुर सनिलो जी, जिनपद लहेशे एह ॥ निर्मल शील प्रन्नावथीजी, टाल्यो मन संदेह ॥सा॥१॥ नक्तं नमीराजऋषिनेजी, देव गयो देवलोक ॥ ते मुनिवर पण अनुक्रमेंजी, देव श्रयो ब्रह्मलोक ॥ Ralसा ॥ १२॥ त्यांथी चवि जिनवर होशेजी, महाविदेह मोकार ॥ विजय पुष्कलावतीमहिंजो, लहेशे नवनो पार ॥ सा ॥ २३ ॥ शीलप्रन्नाव सुणी इस्योजी, हादशमुं पद एह॥कहे जिनहर्ष Salआराधशेजी, जिनपद लहेशे तेह ॥ सु० ॥ २४ । सर्वगाथा ॥ २२ ॥ इति छादश स्थानके नरPalचंद्रवर्मकथानकम् ॥ १२॥ valuना ॥दोहा॥ हवे स्थानक कहूं तेरमुं, समरस जलधि समान ॥ मांहि मन मनमुनि वरें, ध्याय एहवु शुन्न Jain Educ a tional For Personal and Private Use Only wwimmamaliorary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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