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नहीं वांबा नहींजी, धरे नहीं तसु ध्यान ॥ नव ब्रह्म गुप्ति विषय सहिजी, सदा रहे | सावधान ॥ सा० ॥ ४ ॥ देव सनामें अन्यदाजी, वासव करे वखा ॥ नरचंवर्मा मुनिवरतणेजी, चरणे नमी गुणखाण ॥ सा ॥ ५ ॥ राजऋषीश्वर चिरंजीवो जी, कुल दीवो | शिरताज ॥ जेहनें जेदी नवी शकेजी, ब्रह्मचर्य सुरराज ॥ ६ ॥ सुरपतिवचन सुखी करीजी, विजयनाम सुर एक ॥ करण परीक्षा प्रावीयोजी, क्षेत्र जरत सुविवेक ॥ सा० ॥ 9 ॥ आदरसुं परगट की योजी, दिव्य देवांगनारूपवृंद ॥ रुप मनोहर जेहनुंजी, दीवे होय आनंद ॥ सा० ॥ ८ ॥ मुनिवर पासे आावीनेजी, अपसर लागे पाय || हाव भाव करी नव नवाजी, चूकावे मुनिराय ॥ सा० ॥ एए ॥ वनमांहि कानसग रह्याजी, अमम श्रमायी शांत ॥ अप्सर काम वचन कहेजी, कामी मनमें रात ॥ सा० ॥ १० ॥ स्वामी में देवांगनाजी, श्रावी तुमने जोय | जोइ सलू लोयजी, ब्रह्म साइमं सुख होय ॥ सु ॥ ११ ॥ तुमे तो करुणा रसन्नर्याजी, करवा सहुने उपकार || तो अमने पण आदरोजी, तुमसुं नेह अपार ॥ सा० || १२ || उत्तम नर तुम सारीखाजी पीमे नहीं प्रवीण | आशानंग न कीजीयेंजी, तुमसुं तन मन लीन ॥ सा० ||१३|| यौवन गयुं नवी आवशेजी, जिम तटिनीनुं नीर ॥ योग तजी जोग जोगवोजी, करी अमसुं सुख सीर ॥ सा०|| १४ || ब्यो लाहो यौवनतणोजी, मानो वचन ऋषिराय ॥ श्रोम में समजो घणुंजी, दिन दिन जोबन जाय ॥ सा० ॥ १५ ॥ वचनबाण नाख्यां घणांजी, साधु नृपावण दोन ॥ शीलकवच नेधुं नही जी निश्चल रह्यो थिर योन ॥ सु||१६|| दुर्वाते जिम नवि होनेजी, मेरुतलो मध्यभाग ॥ तिम मुनिवरना मननलीजी, रति न लागो दाग ॥ सा० ॥ १७ ॥ रलियायत मनमें थयोजी, अमृताशन तिथिवार || गुएागर्जित नक्तें करीजी, स्तवना करे नदार ॥ सा० ॥ १८ ॥ दानवीरा विद्यावीराजी,
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