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________________ Itam पुण् ॥११॥आनोगिनी विद्यायें जागी युग प्रिया रे, सुव्रता संयति पास ॥ निर्मलचित्तें शीलal लीलायें पालती रे, करती शास्त्र अभ्यास ॥ पुण्॥१२॥ केटलाएकदिन विद्याधर नृपनें घरें रे, सुख नोगवे सुजाण ॥ रत्नप्रना संघातें पांच प्रकारनां रे, दोगंदुक सुप्रमाण ॥ पु ॥१३॥ वीर-sa मन निजनारी लेश अन्यदा रे, कौतुक जोवा काज । पमिनीखंड आव्यो निजनारी जोयवा रे शीलवती शिरताज ॥ पुण् ॥१४॥ सुव्रतोपाश्रय पासें मूकीने रे, रत्नप्रन्नाने तेह ॥देह चिंतानें मिसे वाकिहां गयो रे, वामन रूप करेह ॥ पु० ॥१५॥नमती जमती तेपण पुण्यप्रनावथी रे, आवी Salaपाश्रय ताम ॥ चरण नमी गुरुपीना बे पासें जश् रे, त्रीजी बेठी ठाम ॥ पु ॥ १६ ॥ धर्मोद्यम Na तिहां बन्ने रहे रे, न करे पुरुष प्रसंग ॥ नयणे पुरुष न जोवे मख बोले नही रे. पाले शील अग्नंग ॥ पु०॥१७॥ नाम सुलख्खण नित्य पुरमांहे नमे रे, गाये मीगं गीत sal कौतुक सूक्त कवित्व कथा कहे रे, रंजे सहुनां चित्त ॥ पु॥१७॥ रत्न प्रना अनंत सुंदरीने प्रिय-IN sal दर्शना रे, दुःख नोगवे समान ॥ तीन जणीने मांहोमां श्रश् प्रीतमी रे, एक मननें एक ध्यान ॥ Kalपुण् ॥ १५ ॥ पुण्यशास्त्र नणे बेठी त्रणे जणी रे, पूजे श्रीजिनराय ॥ दान सुपात्रं आपे परम प्रमोदशुं रे, प्रणमे मुनिवर पाय ॥ पु०॥२०॥ पर्वदिवसें पौषध अप्रमादें करे रे, पमिकमj दोश्वार ॥ अवसर पामी सामायिक करे रे, करे सफल जमवार ॥ पु॥ २१ ॥ नमतो रमतो लानृप दरबारमा आवियो रे, देखी कला विज्ञान ॥रलीयायत जिनहर्ष श्रयो राजा घणो रे, राख्यो। देश मान ॥ पुण्॥२२॥ ॥दोहा॥ कोश्क आव्यो कौतुकी, राजन सन्ना मोकार ॥त्रणे सतीतणी तिहां, वात कहे तिशिवार Jain Losti nternational For Personal and Private Use Only
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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