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________________ वीश ॥४॥ IDEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEECXX करी, चोथ जक्त नित्य मेव | गणिनी पासे वे जली, जली गुणी करि सेव ॥ ५ ॥ झील लीलायें पालती, चोखे मन परिणाम | कीरति व्यापी नगरमां, करे सहु गुणग्राम ॥ ६ ॥ ढाल दशमी ॥ कालियो किरतार जणी शीपरें लखुं रे ॥ ए देशी ॥ पुण्यावें मनवांबित संपति मले रें, पुण्यें दुरित पलाय || पुण्यें सुजस जगतमां विस्तरे रे, पुण्यें वांबित थाय ॥ पुण्यः ॥ १ ॥ शेठ सागरदत्त महापुण्यातमा रे, पुत्रीनी परे तास ॥ नोजन नेपथ्य सार संभाल करे जली रे, प्रीति नपावे खास || पुण्य० ॥ २ ॥ वीरन सनज्ञेदय थकी रे, पाम्यो फलक तुरत || पार लह्यो दरीयानो साते वासरें रे, नारी विरह दहत ॥ ० ॥ ३ ॥ एला लविंग तमाल कपूर कोली नली रे, यांबा शव अनंत ॥ विरहा कुल जमे पण मन माने नही रे, स्त्रीविण रति न लड़ंत || पु० || ४ || दोहा || जिहां सुं मनलाएं जसा, तिहां विण खरा न सुहाय ॥ राग रंग गुण चातुरी, किमदी न आवे दाय ॥ १ ॥ ढाल || इसे अवसरे ते रत्नवल्लन विद्याधरू रे, श्रीरत्नपुर नाह || कीमा करवा तिहां कवियो रे, देखी यो नवाह || पु० ॥ प || देखी रूप कला गुण चातुरी रे, राज्यो खेचर तेह | वाली सुधारसशुं संतोपीयो रे, आव्यो निजगेह ॥ पु० ॥ ||| ६ || आदरशुं राख्यो विद्याधर मंदिरें रे, जक्तिकरे बहुजां ॥ पुण्यवंत सघले सुखी या दुवे रे, नित्य लहे नीरांत || || ७ || रत्नमना परगावी कन्या गुणवती रे, उत्सव करि तेणीवार ॥ गगन गामिनी | समग्र जोगिनी रे, विद्या दीधी सार ॥ ५० ॥ ॥ दोई विद्या साधी जिन ग्रागले रे, करी तप दस नृपवास वीरन पण विद्याधर थयो रे, परिघल पुण्य प्रकाश ॥ ॥ इलिपरें निज समकित निर्मल करे रे, सफमेल करे अवतार ॥ श्री जिननक्ति सुगुरुनी भक्ति करे सदा रे, संजरे पुण्य जंमार ॥०॥१॥तिहां श्री जिनवरनी यात्रा करे रे, रत्नप्रभा संघात || विद्याचारण साधु तणी सेवा करे रे, धर्मध्यान दिन रात For Personal and Private Use Only Jain Educationa International istia स्थान ॥४॥ www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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