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वीश
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करी, चोथ जक्त नित्य मेव | गणिनी पासे वे जली, जली गुणी करि सेव ॥ ५ ॥ झील लीलायें पालती, चोखे मन परिणाम | कीरति व्यापी नगरमां, करे सहु गुणग्राम ॥ ६ ॥ ढाल दशमी ॥ कालियो किरतार जणी शीपरें लखुं रे ॥ ए देशी ॥
पुण्यावें मनवांबित संपति मले रें, पुण्यें दुरित पलाय || पुण्यें सुजस जगतमां विस्तरे रे, पुण्यें वांबित थाय ॥ पुण्यः ॥ १ ॥ शेठ सागरदत्त महापुण्यातमा रे, पुत्रीनी परे तास ॥ नोजन नेपथ्य सार संभाल करे जली रे, प्रीति नपावे खास || पुण्य० ॥ २ ॥ वीरन सनज्ञेदय थकी रे, पाम्यो फलक तुरत || पार लह्यो दरीयानो साते वासरें रे, नारी विरह दहत ॥ ० ॥ ३ ॥ एला लविंग तमाल कपूर कोली नली रे, यांबा शव अनंत ॥ विरहा कुल जमे पण मन माने नही रे, स्त्रीविण रति न लड़ंत || पु० || ४ || दोहा || जिहां सुं मनलाएं जसा, तिहां विण खरा न सुहाय ॥ राग रंग गुण चातुरी, किमदी न आवे दाय ॥ १ ॥ ढाल || इसे अवसरे ते रत्नवल्लन विद्याधरू रे, श्रीरत्नपुर नाह || कीमा करवा तिहां कवियो रे, देखी यो नवाह || पु० ॥ प || देखी रूप कला गुण चातुरी रे, राज्यो खेचर तेह | वाली सुधारसशुं संतोपीयो रे, आव्यो निजगेह ॥ पु० ॥ ||| ६ || आदरशुं राख्यो विद्याधर मंदिरें रे, जक्तिकरे बहुजां ॥ पुण्यवंत सघले सुखी या दुवे रे, नित्य लहे नीरांत || || ७ || रत्नमना परगावी कन्या गुणवती रे, उत्सव करि तेणीवार ॥ गगन गामिनी | समग्र जोगिनी रे, विद्या दीधी सार ॥ ५० ॥ ॥ दोई विद्या साधी जिन ग्रागले रे, करी तप दस नृपवास वीरन पण विद्याधर थयो रे, परिघल पुण्य प्रकाश ॥ ॥ इलिपरें निज समकित निर्मल करे रे, सफमेल करे अवतार ॥ श्री जिननक्ति सुगुरुनी भक्ति करे सदा रे, संजरे पुण्य जंमार ॥०॥१॥तिहां श्री जिनवरनी यात्रा करे रे, रत्नप्रभा संघात || विद्याचारण साधु तणी सेवा करे रे, धर्मध्यान दिन रात
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istia
स्थान
॥४॥
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