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जाण माणा, आयमाणावि बज्छंति ॥ ३ ॥ ढाल || एहवुं मनमांहें विमासीनें, कुलपति कहे तेहनें एम ॥ पुत्री पहुंचा पद्मिनी, खंग पत्तन धरीय सनेह ॥ प्र० ॥ १२ ॥ इम कहि मूकी पुर परिसरें, तापस श्राव्यो निजगम ॥ यूथश्री ऋष्ट मृगीपरें, चलचित्त चकित थइ ताम ॥ प्र० ॥ १३ ॥ अरही परदी जमती की, पुरसरवर दीवी ताम ॥ निज पुण्योदयथी रजा, सुव्रता सुव्रता इसा नाम ॥ प्र० ॥ १४ ॥ ज्ञानें करी जाणि साधवी, वांदे जइ तेहना पाय ॥ धर्माशीष दीधी तेहनें मनमांहे हरप्रीत थाय ॥ प्र० ॥ १५ ॥ व कन्या तुं केहनी, केहनी कहेनें तुं नार ॥ ताहारां किहां पीयर सासरां, गणिनी पूढे तेशिवार ॥ प्र० ॥ १६ ॥ निजवात सहु कही नृप सुता साधवी सांजलि विरतंत || पौषधशालायें ले गई, कुमरी मनमें हरपंत ॥ प्र० ॥ १७ ॥ पुण्यशास्त्र जणे नृपनंदिनी, आस्तिक्य मन धरिय अपार ॥ समता अमृतरस स्वादथी, वीसरी गयो विषयविकार ॥ प्र० ॥ १८ ॥ श्रुतज्ञान तथा उपयोगथी, करे क्लिष्टकर्मनो नाश ॥ सिद्धांत अरथ जिमजिम धरे, तिमतिम श्राये अधिक उल्लास | प्र० ॥ १७ ॥ यतः ॥ जं अन्नालीकम्मं, खवेइ बहुआहिं वासकोमी हिं ॥ तं नाणी तिहि गुत्तो, खवेश नसास मित्तेां ॥ १ ॥ ढाल ॥ रूपाली बाली अन्यदा देखी प्रियदर्शना तास, गुरुणी ए को नारी कहो, जिनदर्ष जगे तुमपास ॥ प्र० ॥ २० ॥ ॥ दोहा ॥
सुन कहे साधवी, अनंगसुंदरी नाम ॥ वीरन श्रेष्ठी तणी, ए नारी अभिराम ॥ १ ॥ सिंहलनृपनी नंदिनी, सांजलि एहवी वात ॥ एह सपत्नी माहरी, हीयमे दरष जरात ॥ २ ॥ मीठे वयणे तेहनें, संतोषी धरी प्रीति ॥ बहिनी मंदिर आपणे, आवो रुकी रीति || ३ || लेइ आवी प्रिय दर्शना, आप बापनें गेह ॥ नक्ति करे बहु जांतशुं, आणी परम सनेह ॥ ॥ धर्म करे थिर मन
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