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स्थान
NElबूटो त्रुटो बंध ॥ बूंबारव लोक सहु करे, कटके त्रटके सह संध ॥ प्र० ॥ ४ ॥ आथमतुं वाहाण valsगीपरे, वाजंतां पवन प्रचंग ॥ पुण्यहीण मनोरथनी परें, कमांहे श्रयो शतखंड ॥ प्रण ॥ IN सद्दर्शननीपरें पामियो, नृपपुत्री फलक प्रधान ॥तरती चीजे दिन नीसरी, धरती जिनधर्मनुं ध्यान। NEl॥ किणही कुलपति देखी करी,करुणार्दित मन श्रयुतासव्योआश्रमलेश आपणे,प्रिय पाखें अ-IN
धिक नदास॥प्र॥ ॥राखे तापस पुत्री परें,अद्भूत कायानी वास॥रूपें रंना नवयौवना, मकर ध्वज Raनोआवास॥प्रणाएकदिन कुलपति देखीकरी,मनमांह कीध विचार॥ए नारी ब्रह्मचारी नणी, हा-Sel
लाहल विष अवतार ॥ प्रणाणा सर्वांग सुचंग सोनागिणी, व्यापे देखी मनमोह।। एहनी संगति रूमी al
नहीं, जगमाहे न लहीयें शोह ॥ प्र० ॥१०॥ यतः॥ मदिराया गुणज्येष्टा, लोकध्य विरोधिनी॥ salकुरुते दृष्ट मात्रापि, महिला अहिलं जगत् ॥१॥ अर्थः--स्त्री मदिरा करतां गुणे करी मोहोटी तेम
आलोक परलोकनो विरोध करनारी के जे जोवामात्रमा जगतने घेखें करे ने सारांश मदिरा, पानथी मनष्य मत्त करे पण बेलोकने बीगामनारी स्त्री तो मदिरा करतां अधिक
के जेने जोतांज जगत् गांउथाय . ढाल।जिम अगनी समी लाखनो, थाये दणमांहे विनाश तपसी काया महाबली, तिम स्त्री संगें शीलनो नाश ॥ प्र॥११॥ यतः॥ हरि हर बना ण
जसा, सुर सुरपति बली याह । नारी नयण जबूकमे, कोण कोण नवि वलीयाह ॥१॥अथ salकुंमलीयो कवित ॥ महिला जग मोहण वेली हर परतख हरान विणन्नारथ विण जंगजुमि,
जीत्यो सकल जहान, जीत्यो सकल जहान गौरी रूपें गंगाधर,गोपी वशे गोविंद ॥ ब्रह्मा वश कीध अपवर, सरग मत्य पाताल, आणि निज किरे केली, कहे जिनदर्ष सुजाण, महिला जग मोहण वेली ॥१॥ गाथा ॥ आर्या ॥ संसारे हय विहिणा, महिला रूपेण मंमियं पासं ॥ बऊंति
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