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________________ जीव के, परवश दुःख घणां सहे॥ नूख तरश हो ताप शीत अनेक के, मार प्रहार बहु ॥ लहे द० Salmणानत्तम नव हो माणसनो जेह के, पुस्यवशें जो पामियो, तो तिहां पण हो दुष्कर निजधर्म के, नत्तम कुल विश्रामियो ॥ द॥ १०॥ सांजलवो हो दोहिलो सिहांत के, सद्दहण पण दोहिली॥ सहु पामी हो सामग्री नोग के, गांठ तजी मनमांहिली ॥ ह ॥ ११ ॥ वाट पाडा हो धर्मधनना एह के, वारो तेरह काठिया ॥ ए आव्या हो करे बहुत नजामके, मारो तेह ने लाठीया ॥ दण ॥ १२॥णे जीवें हो पाम्या बहुवार के, राज्य लीला सुखसंपदा ॥ तोहि तृपतो हो न भयो तिलमात्र के, नित नूख्यो नित आपदा ॥ ह ॥ १३॥ जो आवे हो समता मनमांद के, तो तृपतो होवे आतमा ॥ सुखमाहे हो रहे मन सदीव के, जो गेमे सघली तमा॥ ह ॥ १५ ॥ श्म जाणी हो समता रसमां हे के, झिलो जिम शिवसुख लहो ॥ए मूको हो ममता दुख मूल के, सद्गुरुवाणी सद्दहो॥हण॥१५॥श्म दीधो हो नपदेश मुनीश के, सकल सन्ना सुणि गहगही।पुरी थई हो जिनहर्ष ए ढाल के, राय कहे अवसर लही ॥ ह ॥ १६॥ सर्वगाथा ॥ १६ ॥ ॥दोहा॥ प्रनुतुम वाणी मुज रुची, जिम साकरशुं दूध ॥ तुमपासे हवे हुँ सहि, आदर व्रतीश शु॥ जिम सुख पाये तिम करो, म करो नृप प्रतिबंध ॥ करिये धर्म नतावलो, तो थाये संबंध ॥ma वांदी नृप घरे आवियो, तेमी सहु परिवार॥निजसुत विक्रमसेनने, दियो राज्यनो नार॥३॥ले अनु-IN Salमति सहुतणी, घणे महोत्सवे राय ॥श्रीमुनिचंद्र मुनीशने, चरणे लाग्यो आय ॥४॥नवसमुझ salमां बूमतां, तारक तारो मुज॥ करुणासागर कर कृपा, चरण ग्रह्यां में तुज ॥५॥ Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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