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________________ वीश ॥६४॥ मनमनत्र ॥ दोहा ॥ सम्यकदृष्टि र प्रते, हर्ष नृपावण काज ॥ रायें कराव्यं देहरु, कंचनमय शिरताज ॥ १ ॥ उँचो जाणे मेरु गिरि, जइ लाग्यो आकाश ॥ दंग कलश सोहे ध्वजा, निर्मल फटिक प्रकाश ॥ ५ ॥ चंदकांत पाषाणनी, प्रतिमा परम उल्लास || थापी ऋपन जिांदनी, बीजी पण बहु खास ॥ ३ ॥ सिद्धाचल संमेत गिरि, श्री गिरनार प्रमुख || पूजे नक्ति जिनावलि, यात्रा करि लहे सुख ॥ ४ ॥ स्वामी वात्सल्य बहु करयुं प्राप्यां अढलक दान ॥ समकित कीधुं निर्मलुं, हरिविक्रम राजान ॥ ॥ ढाल मी ॥ मेरासाहिब हो शीतल नाथ के ॥ देश ॥ हवे राजा हो कीधो मनविचार के, राज घणा दिन पालियं ॥ हवे की जें हो आतम उपकार के, चित्त विषयथकी वालियं ॥ हवे ||१|| एटला दिन हो कीधो प्रारंभ के, पाप लाग्यां बहु राजनां एथी लहिएं हो दुर्गतिनां दुःख के, ते सुख कहो कि काजनां ॥ ६० ॥२॥ मनमांदे हो एम कीधो विचार के, धर्मकारज करूं हवे ॥ गुरुसंगें हो लेनं संयमनार के, पंम महाव्रत श्रोचरुं ॥ ० ॥ ३ ॥ चिंतवतां हो आव्या चंद मुनीश के रायतयां वांबित फल्यां ॥ घर प्रांगणा हो दूधे बुठा मेह के, मुद मांग्या पासा ढल्या ॥ ह० ॥ ४ ॥ राय चाल्यो हो मुनि वंदन काज के, हय गय बहु परीवारसुं ॥ गुरु दीधो हो वारु नृपदेश के, जाणे अमृत धारं ॥ ० ॥ ५ ॥ नवमांदे हो जमतां इस जीवके, चनगतिनां दुःख अनुभव्यां ॥ वली वसियो हो बहुकाल निगोद के, ते दुख किया जाए खम्यां ॥ ह॥ ६ ॥ करे प्रारंभ हो तीहां नहि पारके, परिग्रह मेले प्रति घणो ॥ पंचेंद्रिय हो हणे मांस आहार के, पामे दुख नारकतलो ॥ ८० ॥ ७ ॥ तिहां बेदन हो नेदन बहु मारके, घाणी घाली पीलियें, वली नवी मां हो शेके जेम धान के, पूरव निज कृते शीलियें ॥ ० ॥ ८ ॥ तीर्यचनी हो गतिमांहे " Jain Educationa International For Personal and Private Use Only स्थान० www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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