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________________ वीश १०८॥ DDDDDDDD ॥ ढाल ७ मी ॥ आवो गरबे रमिये रूमा रागसूं रे ॥ ए देशी ॥ गुरुनो आदेश पामी करी रे, कांई आणी आणी धर्मनो प्रेम रे ॥ जूवो ने लब्धि यतीतली रे, श्रीसंघमांहे आवियारे, कांइ जंगम सुरतरु जेमरे ॥ जूवो० ॥ १ ॥ कां तपनी शक्ति अपार रे, तपस्वी मांदे तपें करी रे, कांइ लब्धि अनेक प्रकार रे || जूवोने लब्धी यतीतणी रे ॥ ॥ २ ॥ कीधी वृष्टि सुवर्णनी रे, कांइ लब्धि थकी जस लीध रे ॥ जू० तीर्थ जात्रीक सडु लोकने रे, कां यथेत्र संबल दीध रे ॥ जू० ॥ ॥ ३ ॥ साधुनी संयति जीरे, कां जक्तपानादिक शुद्ध रे || ग्रामथकी आली करी रे, कां जक्ति करे महाबुध रे ॥ जू० ॥ ४ ॥ संघोपतापी चोरने रे, कां क्रूराशय सहु जेह रे ॥ जु० ॥ मुनि यंत्री राख्या तिरों रे, कांइ प्रतिबोधी मूक्या जेह ॥ जू० ॥ ५ ॥ तीर्थगामी संघ रंगसूं रे, कां पाम्यो परम प्रमोद रे ॥ जू० ॥ तास नमी आगल चल्यो रे, कांइ करतो विविध विनोद रे || जू० ॥६॥ संप्रेमी श्री संघने रे, कां आवे श्रीगुरुपास रे ॥ जू० ॥ मनमां जावे भावना रे, कांइ धरतो चित्त उल्लास रे ॥जू ॥७॥ जन्मतयूं फल तिथे गृह्यं रे, कांइ तेहज मुनि माननी करे ॥ जू० ॥ संघनक्ति कीधी जेणे रे, ॥ कां निज शक्ति तहकीक रे || जू० ॥ ८ ॥ संघ जिणंद सूरीसरू रे, कां साधु महागुणवंत जू० ॥ भक्ति करे बहु मानसूं रे, कांइ दर्शन शुद्ध होवंत रे ॥ जू० ॥ ए ॥ एहवी धरतो जावना रे, कां नाकीश्वर तिथिवार रे || जू० ॥ कांइ स्वांते विशुद्ध जाली करी रे, कांइ प्रगट थयो हितधार आरे ॥ जू० ॥ १० ॥ चरण नमी स्तवना करी रे, कांइ नक्ति घरी सुरनाय रे ॥ ज० ॥ मलयप्रन मुनिराजने रे, कां पूवे जोमी हाथ रे ॥ ० ॥ ११ ॥ वात्सल्य संघतणुं कियुं रे, गुणसायर ऋषिराज रे ॥ ज० ॥ तेहनुं फल शुं पामशे रे, कांइ गुरु कहे सुण राज रे, ॥ जू०॥ १२ ॥ तीर्थंकर COXXXXXXDDDDDDDDDDE Jain Educationa International For Personal and Private Use Only DODDO स्थान० १oruit www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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