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________________ स्थान वीश अजवालो हो । स॥४॥ आठे प्रवचन माता, नव तत्त्व जाणो गुणज्ञाता हो ॥ स ॥ दशविध धर्मयतिनो, एहशुं मन राखो लीनो हो।सायालदमी कल्पलतार्नु, एतो कुसुम करी मानो हो ॥३१॥ killnसादान सुफलथी थाय, पुण्यबीज थकी दुःख जाय हो॥सण॥६॥नत्तमकुल नं।रो संपति नोगी हो॥सणाजस आयुर्बल जामे, वांका अरि पाये नामे हो।सणा॥विद्या वचन विलासा, धर्मे पूराये आसा हो॥साकांतार समुश्मां तारे,आपदथी पार नतारे हो।सणाजादुःकृत नवनवनां l salकापे,सुरन्नुवन तणां सुख आपे हो।सणावली मुगति तणां सुख साधो,जेमनरहे नवथी बाधो हो। सal Salutणाम सांजली मुनिनी वाणी, वाणी हियमामें आणीहो सणानावें प्रणमें करजोमी, पूरे मुनिने अंग मोमीहो॥स ॥१०॥ नगवन् किणे धर्म प्रणीत, ए धर्म परम मित्र प्रीतहो साऋषी नाषे salनत्तम प्राणी, ए धर्मनी वात बखाणी हो॥ स ॥११॥ जेम थया केवलज्ञानी, अरिहंत परम सुख-IN दानी हो स० ॥ तेरो ए धर्म प्रकाश्यो, सह सुखनं कारण नास्यो हो ॥ स ॥१२॥शेठ कहे प्रन्न । Salकरीयें, शे पुण्ये ते पद लहिये हो स॥ तीर्थकर पद पामे, नर तुं सांनल हितकामे हो स॥ Malm१३॥ अरिहंतादिकनी नक्, वीशथानक निजनिज सक्तैहो स॥ तेमांहे अधिकुं जाण्यु, त्रीजुं पद संघ वखाण्यु हो ॥ स ॥१५॥ सुविवेकी निजहिते ग्राही, संघ नक्ति करे नतमाही हो स० निश्वदम करी मनसूधो, आराधे नाव विसूधो हो ॥ स॥१५॥ यतः ॥ गुणानामिह सर्वेषां, रत्नाKalनामिव रोहणः॥ श्रीमान् श्रमणसंघो, यमाधारः परमोन्नुवि ॥१॥ अर्थः-जेम आ पृथ्वीनेविषे सघला रत्नोना आधारस्थानरूप रोहणगिरि.तेम सघला गणोनो परम आधार रूप प्रा श्रीमान् श्रमण संघ.॥१॥ ढाल ॥ निर्मल केवलझानी, अरिहंत परमपद दानीहो सण ॥ नमस्तीर्याय Ilकहंता, करे नमस्कार गुणवंता हो ॥स॥१६॥ सर्वपुण्य एकपासे, एकदिसि संघन्नक्ति नल्लासे हो । ॥१॥ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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