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सहुशुं मली, घणुं दीयुं वली वित्त || मो० ॥ शे० ॥ २० ॥ शेठ वलावी दीकरी, वाब्ही रूमी रीत | मो० ॥ रथ सेजवाली पालखी, देइ राखी प्रीत मो० ॥ शे० ॥ २१ ॥ श्राप्यो हार एकावली, मुक्ताफलनो अमोल मो० ॥ एकहार रत्नावली, जेहनें नही कोइ तोल मो० ॥ शे० ॥ २२ ॥ चल्यो वसंतपुरवर जणी, साधे लेइ निजनार मो० ॥ चाकर नफर साथे घणा, ऋद्धि तणो विस्तार मो शे० ॥ २३ ॥ प्रतिमाधर एक निरखीयो, विद्याधर मुनिराय मो० ॥ कहे जिनहर्षशुं कामिनी, लागा मुनिने पाय मो० ॥ शे० ॥ २४ ॥ सर्वगाथा ॥ ७५ ॥
॥ दोहा ॥
प्रतिमा मूकीकरी, धर्मलाज तसु दीध ॥ आगल वेगे विनयशुं, विधिशुं वंदा कीध ॥१॥ धर्म देखना मुनिपति, आपे पात्र निहाल ॥ नरनारी एकाग्रचित्त, वाणी सुणे रसाल ॥ २ ॥ गुरु वाणी जे सांजले, तन मन जीव लगाय ॥ बहु गुण पामे आतमा, जवजवनां दुःखजाय ॥ ३ ॥ दीपक सरिखां गुरुवयण, हीयमे न वसीयां जाह ॥ वतां चर्म निज लोयणे, जग अंधारो ताह ॥४॥ प्राणी गुरुवारी सुली, आणी जाव अपार ॥ घाणी केरा बेल ज्युं, न करे ते संसार ॥ ५ ॥ ढाल चोथी ॥ बिंदलीनी देशी ॥
वेगे जिनदत्त व्यवहारी, बेटी हारमना नारीहो ॥ सद्गुरु धर्म कहे ॥ धर्म कहे हित प्राणी, मीठी अमृत समा वाणी हो | स० ॥ १ ॥ धर्मश्री धर्म लहीजें, वली धर्मश्री धन पामीजें हो ॥ स० ॥ धर्मश्री सुरसुख सोहिलां, सुख मुगतितणां नही दोहिलांहो । स० ॥ २ ॥ धर्म दया एकनेर्द, ज्ञानक्रिया द्विधा नमेदेंहो ॥ स० ॥ ज्ञान दर्शन चारित्र, त्रण दें धर्मपवित्र हो । स० ॥ ||| ३ || दानादिक चारे गेंदें, व्रत पांच करम नछेदेहो ॥ स० ॥ षमावश्यक पालो, नय सात जाणी
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