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Nalu ७ ॥ यतः ॥ सुखेन बोध्यते ज्ञानी, नैवाझानी पुमान्क्वचित् ॥ अयत्नान्मार्ग मायाति | ISHIचकुष्मान्नेतरे पुनः॥ अर्यः--शानीने सुखें प्रतिबोधी शकाय डे पण अज्ञानी पुरुषने को स्थले पण
बोध करी शकातो नयी. केमके नेत्रवालो माणस वगरश्रमें मार्ग प्रत्ये प्राप्त पाय ठे पण नेत्रहीन मार्गमां श्रमविना आवतो नश्री. जोहो हवे प्रमाद सहु तजी, जोहो करे क्रिया सावधान ॥ जीहो जयंत देव मुनिवर ग्रह्यो, जोहो अन्निग्रह शुन्न परिणाम ॥ म ॥ ॥ जीहो आजपनी करवो
सदा, जोहो ज्ञानतयो नपयोग ॥ जोहो निज्ञ विकया परिहरी, जीहो तजी कषाय संयोग ॥ Ralम ॥ ए॥ जीहो संयम योगविषे हवे, जीहो राज ऋषीश्वर तेह ॥ जोहो ज्ञानोपयोग विस्तार तो
जीहो काले क्रीया करेह ॥म॥१॥जीहो त्रण गुप्ति गुप्तातमा, जीहो नारंम जीम अप्रमत्त ॥ जोहो निशदिन श्रुतनपयोगसुं, जोहो राजी राख्यु चित्त ॥ म ॥ ११॥ जीहो पांच सुमति पाले मानली. जीहो राखे योग विश॥ जीहो आठ कर्म हवा नगी. जीहो मनिवर मामयं यह म॥ १२॥ जीहो बखतर पहेयु शीलनु, जीहो जीन आज्ञा शिरटोय ॥ जीहो चरण करण सेना सजी, जीहो करवा अरिनो लोप ॥ म० ॥ १३ ॥ जोहो बारह नावना नमरा, जोहो सुयश घुरे निशाण ॥ जोहो हादश अंगो हाथिया, जीहो वहता अरथ सुदान ॥मण॥१॥जीहो कमातगुं खम्गुं प्रयु, जीहो दुस्तप तप करवाल ॥ जीहो ध्यान अश्व नपरे चढ्यो, जीहो चाबख चित्त रसाल ॥ म ॥ १५ ॥ जीहो ज्ञानतणा गोला वहे, जीहो संयम शुक बाण ॥ जीहो र्यागुण अति आकरो, जीहो वचन सुतीखां वाण ॥ म ॥ १६ ॥ जीहो सैन्य मोहराजात', जीहो दश-sal दिशि गयुं पलाय ॥ जीहो जयंत बार जगमें थयो, जीहो जयंत देव मुनिराय ॥ म॥१७॥al जीहो साधुपरीका कारणे, जीदो विस्मय धरी अनूप ॥ जीहो आव्यो ६६ करी तिहां,
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