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________________ वोश ॥५७॥ DID CACCCCECEEEEEEEEEEEEEEEE जीहो स्वर्ग अंगनारूप ॥ म० ॥ १८ ॥ जीहो दिव्याभरणें शोजती, जीहो करती विविध विलास ॥ जीदो हाव जाव करे घणा, जीहो करती हास्य विलास ॥ १७ ॥ जीहो नृपने नोलववा नली जीहो यौवनतणे उन्माद || जीहो काम वचन कह्यां कामिनी, जीहो ल्यो प्रभु यौवन स्वाद ॥म ॥ २० ॥ जीहो हुं मोही तुजरूपसुं, जी हो इंतली हुं नार ॥ जीहो जोगवो सुख संसारनां, जीहो करो सफल अवतार || म० ॥ २१ ॥ जीहो हुँ आवी आशा करी, जीहो मकरिश श्रशाभंग ॥ जी हो मेरुतणी परे मुनि रह्यो, जीहो कहे जीनहर्ष अभंग ॥ म० ॥ २२ ॥ सर्वगाथा || २ || ॥ दोहा ॥ ? ॥ त्यापटी कीधुं वली, रूप विप्रनुं खास ॥ घरको हाथे लाकमी, ग्राव्यो मुनिनी पास || नमस्कार ऋषिने कही, बेगे आगल तास ॥ प्रावखं मुफ केटलुं, जगवन् तेह प्रकाश ॥२॥ सम्यग ज्ञानप्रयुंजीने, कहे सांजलो सुरराय ॥ कांइक प्रोढुं आजथी, वे सागरबे आय ॥ ३ ॥ प्रत्यक्ष थ‍ वासव कहे, धन्य धन्य तुं अणगार ॥ सुरस्त्री वचनें नवि चल्यो, न जज्यो विषय लगार ॥ ४ ॥ तुज सरिखा मुनिवरतला, चरण नमे सहु कोय ॥ जीए जीत्युं मन आपणुं, तासदास जग होय ॥ ५॥ ॥ ढाल ४ श्री ॥ कुमरी बोलावे कुवमो ॥ ए देशी ॥ पूबे जगवन् कहो, जीव निगोद विचारो रे, ॥ श्रीजीनमतमांहे दुवे, तेह कहो निरधारो रे ॥ इ ॥ १ ॥ गोला असंख्याता कह्या, असंख्य निगोद गोलोरे ॥ एकेके निगोद में, जीव अनंतनो टोलो रे ॥ २ ॥ नेला मरे नेला नपजे, जेला शरीर निपावे रे || श्वासोच्छवास नेला लिए, आहार जेला सहू पावे रे ॥ ५ ॥ ३ ॥ आहार साधारण सहुनी, साधारण आण पाणोरे ॥ साधारण जीवो तणुं, साधारण लक्षण जाणोरे ॥ इ ॥ ४ ॥ जीम लोहनो गोलो धम्यो, थाय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only स्थान ॥५७॥ www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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