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वोश
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जीहो स्वर्ग अंगनारूप ॥ म० ॥ १८ ॥ जीहो दिव्याभरणें शोजती, जीहो करती विविध विलास ॥ जीदो हाव जाव करे घणा, जीहो करती हास्य विलास ॥ १७ ॥ जीहो नृपने नोलववा नली जीहो यौवनतणे उन्माद || जीहो काम वचन कह्यां कामिनी, जीहो ल्यो प्रभु यौवन स्वाद ॥म ॥ २० ॥ जीहो हुं मोही तुजरूपसुं, जी हो इंतली हुं नार ॥ जीहो जोगवो सुख संसारनां, जीहो करो सफल अवतार || म० ॥ २१ ॥ जीहो हुँ आवी आशा करी, जीहो मकरिश श्रशाभंग ॥ जी हो मेरुतणी परे मुनि रह्यो, जीहो कहे जीनहर्ष अभंग ॥ म० ॥ २२ ॥ सर्वगाथा || २ || ॥ दोहा ॥
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त्यापटी कीधुं वली, रूप विप्रनुं खास ॥ घरको हाथे लाकमी, ग्राव्यो मुनिनी पास || नमस्कार ऋषिने कही, बेगे आगल तास ॥ प्रावखं मुफ केटलुं, जगवन् तेह प्रकाश ॥२॥ सम्यग ज्ञानप्रयुंजीने, कहे सांजलो सुरराय ॥ कांइक प्रोढुं आजथी, वे सागरबे आय ॥ ३ ॥ प्रत्यक्ष थ वासव कहे, धन्य धन्य तुं अणगार ॥ सुरस्त्री वचनें नवि चल्यो, न जज्यो विषय लगार ॥ ४ ॥ तुज सरिखा मुनिवरतला, चरण नमे सहु कोय ॥ जीए जीत्युं मन आपणुं, तासदास जग होय ॥ ५॥ ॥ ढाल ४ श्री ॥ कुमरी बोलावे कुवमो ॥ ए देशी ॥
पूबे जगवन् कहो, जीव निगोद विचारो रे, ॥ श्रीजीनमतमांहे दुवे, तेह कहो निरधारो रे ॥ इ ॥ १ ॥ गोला असंख्याता कह्या, असंख्य निगोद गोलोरे ॥ एकेके निगोद में, जीव अनंतनो टोलो रे ॥ २ ॥ नेला मरे नेला नपजे, जेला शरीर निपावे रे || श्वासोच्छवास नेला लिए, आहार जेला सहू पावे रे ॥ ५ ॥ ३ ॥ आहार साधारण सहुनी, साधारण आण पाणोरे ॥ साधारण जीवो तणुं, साधारण लक्षण जाणोरे ॥ इ ॥ ४ ॥ जीम लोहनो गोलो धम्यो, थाय
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स्थान
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