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स्थान
वीश
सद्मलक्ष्मी वसेजी, सुरसेनराय इणे नाम ॥ ज ॥ ७ ॥ तेहनी पुत्री जसोमतीजी, विश्व कैरवशशी
रूप॥ सौनाग्य विद्याकलाजी, अक्षितीय नारती रूप ॥ ज० ॥ ॥ जीमूतकेतु नृप सुत तणाजी| ॥श्॥ रूप गुण विश्व विख्यात ॥ वनवनें किनरी गावती जी, आनंद धरी दिनरात ॥ जं॥॥सांनली
कीर्ति यशोमती जी, करग्रहण मन धरी आश ॥ अवर वर ते वांडे नही जी, वरुं तो वरु तास ॥ जं॥ १०॥ आशय कुमरीनो जाणीने जी, नृप कीयो विचार ॥ स्वयंवर मंझप मांझीयें जी, नृप
हां आवे अपार ॥ जण ॥ ११ ॥ जमूतकेतु पण तेमीयेंजी, फेरीयें मनतणी आधि ॥ तुरत मंझप करावीयोजी, टालवा सकल असमाधि ॥ ज० ॥ १२ ॥ देश देशाधिप तेझीया जी, तेमीयो जीमूतकेत ॥ बापनी आज्ञा शिर धरी जी, चालियो सैन्य समेत ।। जण ॥१३ ॥वीयो कुमर
ते पुरनणी जी, सिधपुर नगरनी पास ॥ कुमर मूर्ग लही ततखिणे जी, श्रयो सहु साथ नदास ॥ Vela ॥ १५ ॥ मंत्री प्रमुख मुख्य पुरुषंजी, मंत्र औषध नपचार ॥ तेहनें काजे कीधां घणाजी, salच्य व्यय कर्या अपार ॥ जंग ॥१५॥ दान कुपात्रे दीधां परेजी, फोक सघलां थयां तेम ॥ सम्यग
कान पखें क्रिया जेम. फल दिये नहि कम ॥ ज॥१६॥ सरी कलंकदेव तेणे समेजी.नरीगुण नदधि समान ।। तास पुण्योदयथी तिहांजी, आव्या आधार श्रुत ज्ञान ॥ जंग ॥ १७ ॥ तास प्रनावें
मूर्ग गश्जी, नठियो कुमर तत्काल । वांदवा राजसुत प्रावियो जी, श्र जिनहर्ष ए ढाल || जंग Ram १७ ॥ सर्वगाथा ॥ ॥
॥दोहा॥ | तेहनणी प्रतिबोधवा, श्रीगुरु करुणावंत ॥ आपे सम्यग देशना, सुणे कुमर गुणवंत ॥१॥ जीव कषाय वशे करी, आर्न रौप दुर्ध्यान ॥ सर्व योनिमें प्राणीया, नमे पशु जीम रान ॥२॥
॥श्॥
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