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________________ Idlलोक ॥ध ॥५॥ सांजलि व्रत हरिवाहन नृपर्नु, पालो व्रत संविनाग॥ तीर्थंकरपद जेहश्री पामो, Relकहे जिनहर्ष सराग ॥ध ॥ २६ ॥ इति पंचदशस्थाने पात्रदानोपरि नरवाहननृपकथानकम्॥१५॥ ॥दोहा॥ | अथ षोडश थानकविषे, श्रीअरिहंत प्रधानाचार्योपाध्याय मुनि, बालक वृद्ध ग्लान॥१॥तपसी चैत्यश्रीश्रमण, संघादिक दश एहसिम्यक्त्वे पूतातमा, मुनि श्रावक गुणगेह॥शानिर्मल निज आशय करी, जैन वचन धरि संच ॥ ए दशनो विधि पूर्वके, करवो वैयावच्च ॥ ३ ॥ नत्तम गुणधारीतणो, करे वेयावच सुन्नाय ॥ पमवार बीजो सहु, पण वेयावच नजाय ।। नागो पमयो समयथकी, नासे तसुचारित्र।। सुत नासे अवगुण थकी, पण वैयावच पवित्र ॥५॥करी जिनादिकने विषे, वैयावच INEIमन शुद्ध ॥ जीमूतकेतु तणी परे, लहे जिनवर श्रिय वृक्ष ॥६॥ ॥ढाल १ ली ॥ वीर वखाणे राणी चेलणाजी ॥ एदेशी॥ | जंबूदीपानिध दीपमें जी, दक्षिण जरत सुगंम ॥ पुष्पपुर नामें अति दीपतुं जी, अन्नत श्रियतणुं ठाम ॥ जं ॥१॥ राय जयकेतु जयमित्रनेजी, शत्रुने केतु समान ॥ पृथुपरे प्रथितप्रन्न नूतले जी ॥ मुख सरस्वती करदान ॥ ज ॥२॥ राणी जयमाला राजा घरेजी, शील गुण कला सुजाण ॥ तास अंगज जगपती समो जी॥ वंशमें नगीयो नाण ॥ ज० ॥३॥ राजसगुणे Naकरि राजतो जी, जीमूतकेतु इणे नाम || धारणहार जूनारनोजी, रूपें हरावियो काम ॥ ज॥॥ लावण्य पुस्यगुण जेहनाजी, देखी देखी पुर नार ॥ सफल करे ढग आपणीजी, मोही जिम पिक सहकार ॥जंणा॥ पामियो बाप प्रसादथीजी, जुवराज जोबनमांहि॥निर्मल सद्गुणे आपणाजी, लोकरंज्या शुभ राहि ॥ जं॥६॥ पृथ्वी तल प्रसिद्ध चिंहु दिशेजी, रत्नस्थलपुर अनिराम ॥पद्मपरें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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