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नहि योनि नहि जाति ते, नहिं गम कुल आचार ॥ जन्म मृत्यु न थयो जिदां, जीव अनंती वार | ॥ ३ ॥ पापी निर्दय रूप विण, नारकथकी नर होय ॥ कपटी नित नूखालुओ, तिर्यंच श्राव्यो जोय ॥ ४ ॥ मृतागत मानी सुबुद्धि, ज्ञानविवेक सहित ॥ सुन्नग प्राइ कवि श्रीयुतो, स्वर्गागत शुभचित्त ॥ ५ ॥ रौध्यान कषाय बहु, द्वेषी विषयासक्त ॥ बह्वारंज परीग्रही, पंचेंशिय बध रक्त ॥ ६ ॥ मांसाशी वासी नरक, उद्यत कूट प्रयोग || मायावी वाली कटुक, अविरति तिर्यग योग ॥ ७ ॥ सदयी दानी निष्कपट, सदाचार गुणधार ॥ सत्यवचन भाषी सदा, नरगति पामे सार ॥ ८ ॥ पात्रदान भाषा मधुर, पूजा रुचि सुविनीत ॥ सावधान सम्यक क्रिया, सुरगति बांधे प्रीत ॥ ढाल २ जी ॥ ऋषभदेव मोरा हो । ए देशी ॥ राग मारुकी ॥
एहवी दीधी देशना प्रांते कर जोमी हो ॥ श्राचारजने विनवे, नृपसुत अंग मोमी हो ॥ १ ॥ कहे गरु बुको प्राणी हो, हितसुं हैमे धरजो ॥ जिनवरनी वाली हो || कहे || अकस्मात् वी इहां, मूर्खों मुज स्वामी हो ॥ श्ये कर्मे करी ते कहो, पुढं शिर नामी हो ॥ क० ॥ २ ॥ गुरु गुण अगर इम कयुं, सुण चित्त नमाहे हो ॥ परितपत्तन परगको, धातकी खंगमांहे हो ॥ क० ॥ ३ ॥ गर्व खर्व तुंगातमा, दुर्वासा कोपी हो । यति चर्यायें प्रमादियो, त्रयगारव नपीहो ॥ क० ॥ ४ ॥ साकेतपुरप्रतें अन्यदा, श्रीसूरिसंघाते हो | तृषाकांतसहु मुनि थया, मारगें। जाते हो ॥ क० ॥ ५ ॥ श्रासनग्रामे गुरु कहे, मुनि पाणी ब्यावो दो ॥ बालग्लानादिककारणे, आणीने पावो हो ॥ कण् ॥ ६ ॥ एह वचन गुरुनां सुणी, क्रोधें ऋषि जरीयो हो । जिम तिम बोले गुरुनणी, अवगुणनो दरी यो हो ॥ क० ॥ ७ ॥ स्थविरे वार्यो तेहने, मृदु मीठे वयले हो ॥ पल ते न समे क्रोधथी, जाणे पावक नयरों दो || कण् ॥ ८॥ सद्गुण माणिक पुरीयो, गुणानिधि सुप
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