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थिति सुहन्नाव खवेद ॥१० ॥ अंतरकरणे गुण गावतो, प्रथम समय इणिपरे वर्ततो॥ नखर देश वली नोये चरे, नला वन दवनी परें ॥११॥श्म अनुदय श्रयो मिबित, जीव लहे नप. शम समकित ॥ चवी नपशम समकितश्रकी, प्रते मिथ्याती न पहोंतो शकी॥१२॥तास विचाले sal षट आवली, सास्वादन समकित लहे वली ॥ अथवा करे उपशम समकिते, पुंजत्रिका मिथ्यात्वह प्रते ॥ १३ ॥ प्रयोगपरीणामवशे अत्यंत, मयण कोवाने इष्टांत ॥ शुक्ष अर्ध अने शुभ अशु, तिहां पहिलो वर्ततो बुद्ध ॥ १५ ॥ दायोपसमकित थाये सही, बीजे मिश्र वात जिन कही। मिथ्यादृष्टि त्रीजे पुंज, ईम नांखे गणधर गुणगुंज ॥१५॥ मिच्छमवह पुगल परिअह, समकित नण्यु सागर गसठ ॥ अंतर मुहरत मिश्र वखाण, जघन्य Nal नत्कृष्ट कह्यो सर्वाण ॥ १६ ॥ नपशमिक आवे पंचवार, असंख्य क्षयोपशम सुविचार ॥ कलष अंबु सारीखुं हुंत, कयोपशम नांख्यो नगवंत ॥ १७ ॥ निर्मल सलिलतणीपरे जाण, उपशम सम-sal कित हियडे आण ॥ कायिक समकित सुण गुणवंत, विमल सलिल निर्मल अत्यंत ॥ १८ ॥NE क्षयोपशम नपशमिक समान, अथ विशेष सनिलो सुजाण ॥ नपशमिक वेदे न प्रदेश, एक मिथ्या-10 त्वतणो लवलेश ॥१ए ॥ सासायणोव संमियाडंत, पंचवार नत्कृष्ट गणंत ॥ वेद कषायक एको वार, असंख्य खोवसम निरधार ॥ २०॥ समकित गुण पामे गुणवंत, पलिय पहुते श्रावक हुँत usa चरणोवप्तम कयें अनुक्रमी, सागर संख्यांतर संजमी॥१॥ जेहनो दूर तीर नतार, प्रवहण फूटो जलधि मझार ॥ बुझता नरने तिणिवार, फल्या सायण सरण विचार ॥ २२ ॥ तिम संसार जलधी दुतीर, जनममरण दुखजल गंन्नीर ॥ जीवनणी जीहां शरणे होय, समकित आसायण Nal तुं जोय ॥ ३३ ॥ जेम दुकाल काल अवगणी, अशनविहीण कुडित नरनणी ॥ तुरत मिले आवी
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