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________________ Salनवि लदे, गुरु गीतारथ इणिपरे कहे ॥ २ ॥ अष्टम नक्तं यतिवर आदरे, कर्म निर्जरा जेटली करे ॥ वर्ष कोम पण ते नवि हुवे, नारकि जे बहु सुख अनुन्नवे ॥३॥ दशम करतां जेटलां कर्म, साधु खपावे नवन्नय कर्म ॥ कोमाकोकि वर्ष लगि तेह, न खपावे नारकी अबेह॥४॥ यतः॥ अष्ठम नक्तं कोमी, कोमा कोमिय दसम नमि॥ओपरं बहु निजजर देननूणं तवोन्नतिन ॥१॥ कर्मचमनंजणने काज, घिदोपम नांख्यो जिनराज ॥ बे प्रकार तपविषे प्रमाण, म कर वृथा प्रमाद सुजाण ॥ ५॥ तपमान तप तीव्र मुनीश, नपशम शीतल Salरहे निशदीश ॥ ते तीर्थंकर लक्ष्मी वरे, कनककेतु राजानी परे॥६॥ तथाहि ॥नरत क्षेत्रमा Balशिरदार, शोन्नाधार कमालंकार ॥ कांपिल्यपुर नगर मन गमे, नागलोक जिम जानोगी रमे ॥ ७॥राजे तिहां दोगिभर्तार, प्रजापदानो प्रतिहार ॥ विश्वंनरनामें महाबली, पट राणी तसु कनकावली।जानिपावी निजकरे जगदिश, शोने लक्षण जसु बत्रीश॥ दान व्यसन तेहने sd Nal कर घj, ते तो लक्षण नत्तम तj॥णामान घणुं आपे जरतार,तोपण न करे गर्व लगार ॥पति करे Na तेम चाले सती, रूपें रति सरस्वती गुणवती॥१॥सत्रमा जिम परम पवित्र, पुत्र तेहने सुगण वि चित्र ॥ कनककेतु तेहर्नु अनिधान, वैरिने शिर रिपु समान ॥ ११ ॥ वर्ष पांच तथा थयां सात, Balनवाकाजे मुक्या तात ॥ कला बहुतेर तणो अन्यास, कला आचार्य करावे तास ॥१२॥ नवा sal नपर मन लयलीन, सकल कलामां श्रयो प्रवीण ॥ अनुक्रमें यौवन पाम्यो तेह, मोहनी कर्मोदयश्री Saजेह ॥ १३ ॥ धर्मथकी नपरांगे सहि, धर्मवात न सुहावे सहि ॥ बीजी कला घणी हद, धर्मविना ते सघली रद ॥ १४ ॥ नृपने कुमर सुहावे नहि, सदा दुःकृत शोन्ने जेमांही ॥ सम्यक धर्म कला विण जेह, किसा कामनो अंगज तेह ॥ १५ ॥ अंगज मलने पण दाखिये, कायाश्री अलगो ना Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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