SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 245
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Nauसु० ॥ चार लाख तिर्यंचनी हो लाल ॥ चनद मनुष्यनी धार ॥ सु०॥ २१ ॥ व ॥सांनल हवे । पृथवीतणो हो लाल ॥ बार लाख कुलकोड ॥ सु०॥ सातलाख अँपकायनी हो लाल ॥ तेन तीन लाख जोम ॥ सु॥ २२॥ व०॥ सात लाख कुलकोमि वायुंनी हो लाल ॥वीसा पणवीस ॥ EER॥ लाख देव नारकीतणा हो लाल ॥ नर बार लाख जगीस ॥ सुण ॥ २२॥ व॥ एक एक प्रत्येके सही हो लाल ॥ योनी कुलही मोकार ॥ सु०॥ सर्वजीव मुखिया हो लाल ॥ पाम्या अनंतीवार ॥ सु ॥ २५ ॥ व ॥ आदि नहि कांश कालनी हो लाल ॥ जीवो कर्म अनादि ॥ Film सु॥श्म चिंतवी करवो नहि हो लाल ॥ किणसूं मोह विषाद ॥ सु० ॥ १५॥ व ॥ विषय Salकषायवशे करी हो लाल ॥ आस्रवयुक्त अतीव ॥ सु॥ एकेश्यिादिकविषे हो लाल ॥ योनिमुख सहे जीव ॥ सु ॥ २६ ॥ व०॥ तीव्रमोहोदय जीवने हो लाल ॥ कहे जिनहर्ष अनाण ॥ सु॥ महानय कोमल वेदनी हो लाल ॥ लहे एकेंश्यि खाण ॥सु ॥ २७ ॥ व ॥ सर्वगाथा ॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ Seal नरके पामे नारकी, गोयम तीखां दुःख ॥ तेश्री अनंत निगोदमें, नांखे प्रनु निजमुख ॥१॥ alविविध रूप ए जोनिमें, नमियो वार अनंत ॥ श्रीजिनन्नाषित धर्म विण, दुखियो जीव अनंत an॥ झोन दर्शन चारित्र तँप, चार प्रकारे धर्म ॥ पंथ मुक्ति जावातणो, वारे दुर्गति मर्म ॥३॥ इत्यादिक गुरुवचन सुणि, बुग्यो सागरचंद ॥ लीधो संयम गुरुकने, धरतो मन आनंद ॥४॥ प्रिया आठ सागरतणी, लीधो संयमन्नार ॥ कर्म धर्म हलि मलि करे, ते विरला संसार ॥ ५ ॥ अमृतचं नरेश्वरू, सागरसुत निजपाट ॥ आरोप्यो श्रीसूरिने, करे नत्सव गहगाट ॥ ६ ॥ आठ Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy