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घणी संघाते पण वढवाम, जाणे चलती घरमे धाम ॥ अनुक्रमे घरथी लक्ष्मी ग, घणाकालथी हुती सही ॥ कलहे कलशानां जलजाय, कलहे नली वार नवि श्राय ॥ ॥ कलहे नाशे घरना देव, कलहोद्वेगवधे नितमेव ॥ कलहे वाघे जग अपवाद, कलहे वाधे मन विषवाद ॥ ५ ॥ कलदे पूरवज की रतिघटे, कलदे मांहो मांहे वढे ॥ कलहे तूटे प्रीत प्रतीत, कलहे अपजश होय फजीत ॥ ६ ॥ बहु दिन नारी प्रचंमाघरे, शेठ रह्यो सुखमें हित धरे ॥ एक दिवस मन घरी बलास, मदन गयो चंक प्रवास ॥ ७ ॥ चंगा विकटाकृति विकराल, मुसल उपाडी ततकाल ॥ मुक्यो क्रोधें करि मारवा, कोय न शके तेहने वारवा ॥ ८ ॥ तद्भयशेठ हिये थरहस्यो, नागे तुरत मनमरयो ॥ तेहने केमे प्रचरिजइस्यो | मुसल साप श्रइने धस्यो || || श्राव्यो शेठ प्रचंमा वास, आकुलमन गरियो नसास ॥ निज तन पीठी करती हती, नाह जणी नांखे गुणवंती ॥ १० ॥ श्राज नासिका पूरयो श्वास, प्रार्यपुत्र किम यया नदास || शिथिल वस्त्र आकुल व्याकुला, किहांथी श्राव्या नतावला ॥ ११ ॥ शेव कहे तुं सांभल नार चंका मुसल मुक्यो उतार ॥ सापथ आवेवे बतो, हुं नाठो तिहांथी बीहतो || १२ || राख्यराख्य मुजशरणे हवे, इसी परे दीनवचन मुखचवे ॥ मुऊने तेह साप मारो, तुजविण तेहने कुल वारशे ॥ १३ ॥ ॥ कथा करतां व्यो साप, काल जुजंगम जागो पाप ॥ जीपण आकृति बीदावतो, फुंकारा करतो धावतो ॥ १४ ॥ अंगोछर्त्तननो मलजेह, वर्त्ति करीने मुक्यो तेह | सापनी सामोतिशिवार, राखल पोतानो जरतार ॥ १५ ॥ विद्यामंत्र नली तत्काल, नकुलरूप थयो विकराल || क्रोध करीने मुक्यो तेह, नत विषहर हुंतो जेह ॥ १६ ॥ देखीने सामोदोमियो, सापतणे तिले नक्षण कियो ॥ मंत्रौपधिना एह प्रयोग, नासे थाए जेहथी रोग || १७ ॥ स्वस्थी नूत थयो तव शेठ, नारी अचरिज | दीगे ठेठ ॥ तेहने मंदिर वसियो रात, मन चिंते वे नारि कुजात ||१८|| मंत्र यंत्र औषधीनी जाए,
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