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वीश
॥१०८॥
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जिनमंदिर महाराज ॥ कुमरसंघातें आविया, धर्मे वासित काय ॥३॥ समुइदत्तनामा अन्यदा, शेट करण व्यापार | गयो पुरी वाणारसी, लेइ वस्तु अपार ॥ ४ ॥ एक दिवस नृप मंदिरें, नृप आगल कही वात | शेठ पुरंदर कुमरनी, सघली कही विख्यात ॥ ५ ॥
॥ ढाल ६ वी ॥ मुनि मानससर हंसलो ॥ ए देशी ॥
राय विजयसेन नरपती, सांगली कुमर वदंतोरे ॥ हृदयहर्ष नरपुरीयो, मिलवा मन नलसंतोरे ॥ रा० ॥ १ ॥ लेख लखी निज पुत्रने, शीघ्र बोलावण काजोरे ॥ चाकर कर देइ मोकल्यो, श्राव्यां सरशे सदु काजोरे ॥ रा० ॥ २ ॥ लेख नृपतिनो कुमरने, आप्यो हाथे लेइ तामो रे || कागल वांचीने गहगह्यो, रहेवानो नहीं कामो रे ॥ रा० ॥३॥ कुमर नृपतिने पुर्वी करी, दयिता साथे लेइ रे ॥ विद्यासुं त्रैलोक्य स्वामिनी तास प्रजावे रचेइरे ॥ रा० ॥ ४ ॥ दिव्य विमाने बेसी करी, लेइ खेचर परिवारोरे ॥ नमतां तीरथ वाटनां, धरतां दर्ष अपारो रे ॥ रा ५ ॥ पुरी वालारसी प्राविया, बाप तले पाय नमीया रे || गुणवंत ऋद्धि पामीने, न तजे विनय नपमिया रे ॥ रा० ॥ ६ ॥ कुमर पुरंदर थापीयो, नत्सवसुं निजपाटें रे ॥ मलयप्रन मुनिपति कने, व्रत लीधुं गहगायें रे || रा० ॥ ७ ॥ कुमर पुरंदर पुरनली, विद्याने अनुभावे रे ॥ राजाधिराज पदवी लही, अनामी पाय लगावेरे ॥राणा ॥ ग्राम ग्रामे पुरवर पुरे, जिन प्रासाद करावे रे | उत्सवसुं वित्तव्यय करी, मूरती मांहे मंडावे रे || राण संघ वात्सल्य करे सदा, सहुजनने नपगारीरे ॥ पूजा जिनेश्वरनी करे, पोषे पात्र विचारीरे ॥ |रा० ॥ राज पालतां बहुदिन यया, आवती जरा नीहाली रे ॥ तेज शरीरापहारणी, आवी समता परनाली रे ॥ रा० ॥ ११ ॥ अंगज बंधुमतीतलो, नाम जयंत कुमारो रे ॥ राज्यपदे तेह थापियो, उत्सव करीय अपारो रे ॥ रा० ॥ १२ ॥ पांचसें राज साथे ग्रही, दीक्षा नलट आणी रे, पासे
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स्थान
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