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________________ ॥ ढाल १ ली ॥ चोपाईनी देशी॥ चारित्र सामायिक बेनेद, एक आगात् अणगार अखेद ॥ देशविरति तत्राद्य स्वरूप हादश व्रत आराधनरूप ॥१॥हितीय सावद्य व्यापार, वर्जन पंचमहाव्रत धार ॥ समिति गुप्तिविषे सावधान, अणगारिनु थाय प्रधान ॥ २॥ यतः॥ सावऊ जोगविरन, तिगुत्तो सुसऊन॥ नवनत्तो जयमाणो, आयासामाश्यं होई ॥ १ ॥ ज्ञानदर्शन चारित्र समान, आयो । लान समाय निदान ॥ अथवा आत्मपरें सहु प्राण, देखे तेह समाय वखाण ॥ ३ ॥ अपूर्व ज्ञान दर्शन चारित्र, पर्याय जोमी जे मित्र ॥ समय एव सामायिक धार, मूल गुणकरो जे आधार ॥ ४ ॥ गुण आधार सामायिक भाष, सर्व नावनो जिम आकाश ॥ चरणादिक । गुण सहित प्रवीण, नवि कहियें सामायिक हीण ॥५॥ते कारणे कह्यो जिनराय, सामायिक निश्चयसुं नपाय ॥ मन कायाना दोष अनेक, गमन रमण शिवपुर सुविवेक ॥६॥ यद्यपि सर्व चारित्र विचार, सर्व सावद्यतणो परिहार ॥ ते माटे सामायिक कह्यो, गुरु मुखन्नेद तेहनो लह्यो ॥७॥ पण ते बेदादिक सुप्रकार, नानान्नेद लहीयें सार ॥कहीयें प्रथम सामायिक तत्र, तेहना Ra दोय नेद ने यत्र ॥ ॥ इत्वर यावत्कथि कहिजे, ईश्वर स्वल्पकालसुं लहिजे ॥ प्रथम चरम तीर्थकर वार, नरतैरावत क्षेत्र मोकार ॥ ॥ प्रथम शिष्यने यावत ओप, कीजें महाव्रत आरोप तावत्सीम पले शुन्नचित्त, दोपस्थापनीय चरीत ॥१०॥ गुरु शिष्यने व्रत दीध अतीव, यावत्कथिक दुवे जावजीव ॥ लरतैरावत के जाण, अजितादिक बावीश प्रमाण ॥ ११॥ तेहना साधुनणी जाणवो, नावें हश्मामां आवो ॥ तेहनो लान्न जिनागममांह ॥ एहवो जिनवर कह्यो । नगंह ॥१२॥ सामायिक नपधाती यथा, पहेलां दो करम गणे तथा ॥ मिथ्यात्व मोहिनी कर्म Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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