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उन्माद रे॥ पु०॥ १७ ॥ तास नूपादिक सहु कहे, वचन वेश्यानणी तामरे ॥ राय हजुर नजरे कला, देखाडे इणगम रे ॥ पुण् ॥ १७ ॥ गीत नृत्यादि कौशलपणुं, मगधसेना तिणिवार रे । नृप-
II सन्नामांहे देखामियु, पण खुश। न श्रयो दरबार रे ॥ पुण्॥ १५ ॥अंगसौन्नाग्य अद्भुत कला, रंग-al मंझप प्रावी ताम रे॥कला देखामवा रायने, वेश्या मगधसंदरी नाम रे॥ पु० ॥ २० ॥ सोल शृंगार बनाविया, रत्नसोवन अलंकार रे ॥ विस्मय लोक देखी श्रया, कहे जिनहर्ष सुविचार रे ॥ ॥ पु ॥ १॥ सर्वगाथा ॥५॥
॥दोहा॥ कणयर फूल बंधे मुखें, सूक्ष्म सोश संघात ॥ विष लेपी तिणे नोंये ग्वी, करवा तेहनी घात॥१॥ कलिका तस सहकारनी, सर्वत नपरे तास ||मूकावी पोते सदा, मगधसेना गुरुपास ॥२॥ कर्णिREकार मूकी करी, पडे ब्रमरनी श्रेण ॥आंबानी कलिका प्रते, करे शब्द हर्षेण ॥३॥ मा मगध Na
सुंदरीतणी, प्रवर विदग्धा माह ॥ कहती अश् विचारीने, गीतमांहि एक गाह ॥४॥ कर्णिकार सुरत्नं नयां, नमरा मूकी दूर ॥ आंबाकेरी मांजरी, सेवे आइ हजूर ॥ ५॥ ते अन्निप्राय जाणी करी, वक्रोक्ति कोविदा तेह ॥ अप्रमत्त एणे तजी, सकल तेह गुणगेह ॥ ६॥
॥ ढाल ६ छ। ॥ मधुकरनी देशी॥ चरणन्यास करती की, नृत्य करे तिणिवार ॥ मनहर ॥ धरती पग लागे नही, जाणे सुरनी नार ॥ मनहर ॥१॥ गुरु नपदेशों संदरी, एमको नविक प्रमाद ॥म०॥ अप्रमादें वांन्ति। लदे, पामे जगजसवाद ॥ म ॥२॥र गुण॥ राग आलापे नव नवा, विच विच कथा कल्लोल ॥ म ॥ गावे गीत शृंगारनां, घुघरियां रण मोल ॥म॥३॥गु॥ वाजिन वाजे अति नला, मादल
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