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________________ स्थान नणारा देहरासरन शुन्न दिने रे लाल, करे प्रतिष्ठा खास सुणाखरचे व्य तिहां घणुं रे लाल, परे सहनी आश ॥सु०॥न ॥१॥ प्रजा श्रीजिनराजनीरे लाल, करे निरंतर प्रात स धोयां पहेरी धोतीयां रे लाल, निर्मल कर निज गात सु० ॥ न ॥ १२ ॥ निर्मल पट नलपर धरे रे लाल, विधिशुं श्रीजिनबिंब सु० ॥ पुष्पोदक पूरे करी रे लाल, अनिषेकं अविलंब सु॥ न ॥१३॥ पूत मनें पूतातमा रे लाल, जिनवरशुं चित्त लाय सु॥ सूत्र पाठ एहवो कहे रे लाल, नन्नो रही प्रनु पाय सु॥न ॥१४ ॥ यतः ॥ बालत्तणमि सामिय, सुमेरु सिहरम्मि कणयNAकलसेहिं ॥ तिअसा सुरेहिं न्हविक, ते घना जेहिं दिछोसि ॥१५॥ तथा च ॥ चक्रे देवेंद्रराजैः सुरगिरिशिखरे योऽनिषेकः पयोभि, नृत्यंतीनिः सुरीनिललितपदगतैस्तुर्यनादैः सुदीप्तैः ॥ कर्तुं तस्यानुकारं शिवसुखजनकै मैत्रपूतैः सुकंन्नै, बिवं जैनेशांतं सुविविधवचनतःस्नापयाम्यत्र। Na काले ॥ अर्थः-पूर्वे सुरगिरि (मेरुपर्वत) ना शिखरपर नृत्य करती एवी देवांगनाओ सहित सुरें। Sal सुंदर मनोहर पदनी अंदर रहेला अतिप्रदीप्त एवा तुर्य आदि वाजीत्रोना नादयुक्त जे अनिषेक गायनुं दुध तथा नाना प्रकारना जलथी करयो हतो तेनुं कारण के जे शिवसुख (मोक्ने नत्पन्न करनार, ते अनुकरण करवा माटे मंत्रोथी पवित्र सुंदर कलशोए करी अतिशांत एवा श्रीजिन अनुना बिंब (मूर्ति ) ने आ समयने विषे विविधप्रकारनां वचनो (स्तवनो) वमे हुं स्नान sal करावं बु. ॥ १६ ॥ ढाल ॥ नक्ति युक्ति पोता तणी रे लाल, दधि दुग्धादिक सार सु० ॥ करे अनिषेक जिनेश्नो रे लाल, शांत नणी सुविचार सुन ॥ १७ ॥ न्हवरावे गोखीरशुं| सारे लाल, प्रनुने नक्ति विश ल सुण ॥ खीरधवल निर्मल रस रे लाल, सुर नुवनें चिरकाल सु॥न ॥१०॥ दैधिकुंनें जिनवर नणी रे लाल, जे सीचे नव्यलोक सु० ॥ दिव्यरूप Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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