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________________ वीश 113011 COADODDE ते कहे राय प्रधान | सोमवंशी करुणा निलो रे, नृप पुरुषोत्तम नाम ॥ ८० ॥ १२ ॥ पूरवजव दस्ती डुतो हो, विंध्याचल वनमांदे ॥ पाम्यो मृत्यु दवानले रे, अंगी रक्षा सुपसादे ॥ ० ॥ १३ ॥ राजानी पदवी लही हो, जाती समरण पामि, प्राच्य प्रिया स्त्री जाणवारे ॥ चित्र लिख्युं नरस्वामी ॥ हणा१४।। माहरे हायें प्रापी यो हो, में सहु पृथिवी मां हि ॥ देखाड्यो चित्रामएरे, सदु पर मूक्या अवगाहि ॥ इ० १५ रूप सुधारस सारिखुंहो, नेत्रपुढे ते पीध ॥ काया ताप गली गयोरे, कुमरी मन रूपें दीध ॥ ० ॥ ||| १६ || तेह स्वरूप जाएयुं सहूहो, पद्मश्रीनें तात ॥ सामग्री विवाहनीरे, सहु कीधी स्वर्ग विख्यात ॥ ० ॥ १७ ॥ हयदल पयदल मंत्रवी हो, साथै बहुपरिवार || पद्मावती नगरी प्रत्येरे, मोकले | पुत्री तेलीवार || इ० ॥ १८ ॥ तात चरण प्रणमी करीहो, प्रणमी माता पाय ॥ मात पिता दीये शीखमीरे, कुमरीने कंठे लगाय ॥ ० ॥ १९७ ॥ धर्मगुणाधिकनें विषे हो, मकरे पुत्री प्रमाद् ॥ मुक्ति दायक ए जीवनेरे, टाले जवना विषाद || ह० ॥ २० ॥ जीवतणी जयला करे हो, पाले निर्मल शील ॥ शील न पाले प्राणीयारे, परजव दुःख जव हील ॥० ॥ २१ ॥ पतिनुं मान लही करी रे, मकरे गर्व गुमान ॥ सधला उत्तम गुणतणुं रे, ए गर्व गमाने मान ॥ ० ॥ २२ ॥ नक्तिकरी जिनवर ती हो, नमजे साधु महंत ॥ दान सुपात्रें आपजेरे, थाजे पुत्री गुणवंत ॥ ह० ॥ २३ ॥ निज गुरुणी बे तापसी रे, चरणे नाम्युं शीष | बाइ सुखी थायजेरे, जिनहर्ष दीधी आशीष ॥ इ० ॥ २४ ॥ सर्वगाथा ॥ १७८ ॥ ॥ दोहा ॥ राजा तापसी वाद करी, लेइ नृप आदेश ॥ कुमरी चली नगरी प्रत्यें, साथै साथ विशेष ॥ १ ॥ पण स्त्री वेषधरी, तापसणी पाय लाग ॥ तुम सुपसायें मातजी, फली युं माहारुं नाग ॥ २ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only XXXXXXXXXXXXXXXX स्थान' ॥३०॥ www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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