________________
नासतो, देखे आप समाय ॥ म० ॥१७॥ गुण ॥ तेहने दुख व्यापे नहि, व्यापे नहि विषव्याधिम लोकोत्तर श्री तेहने, लहे जिनहर्ष समाधि ॥ म ॥ १७॥ गुण ॥ सर्वगाथा ॥ ७॥
॥दोहा॥ | एहवी गुरुवाणी सुणी, आणी हश्मे रंग ॥ अनुपम थानक तेरमुं, करे राजऋषि अन्नंग ॥१॥ पंच प्रमाद तजी करी, हृदय धरी शुन्नध्यान ॥ निःकषाय मौनी सदा, रहे प्रतिमा धरि ध्यान ॥२॥ निःस्पृहैक शिरोमणि, सर्व प्रसंगविमुक्त ॥ सहे परीसह आकरा, समतारस संयुक्त ॥३॥दमा आर्जव मार्दव सहित, निलोनी निर्माय ॥ मन नज्वल लेश्या धरे, योगीश्वर थिरनाय ॥४॥ सुख दुखमां मन सारिखं, तपस्तेज दिने ॥ परमानंद निदाननी, इहां अनुन्नवे मुनीं ॥५॥
॥ ढाल ४ श्री॥ विमलाशिर तिलो ॥ए देशी ॥ ID सुरपति सुरनी सत्नाविचे, कीधी प्रशंसा ताम॥दोन्ने नहि मुनिध्यानश्री,चुकावे सुर ध्यान।।सुरण San१॥ मेरु चलाव्यो नवि चले, शेष न धूणे शीष॥ तिम मुनि न चले ध्यानश्री, जाणो विश्वा वीश Ram सु० ॥२॥ सुरपतिवचन सुणीकरी, सद्दहणा न धरेह ॥ एक अग्रमेषी इंश्नी, नूलोके आ-sa
वह ॥ सु॥३॥ साधे वृंद देवांगना, लेश रूपनिधान ॥ जाणे मोहराजात', कटक महाबलवान ॥ ४ ॥ सु० ॥ राजऋषीश्वर आगले, गावे मधुरां गीत ॥ मन नपजावण मोहनी अचल चलावे चित्त ॥ सु० ॥ ५ ॥ नृत्य करे ते बहपरें, कला देखावे कोम ॥ अंग नपांग दिखावती, पाय नमे कर जोक ॥ सु०॥ ६॥ जेह अल्पसत्वना धणी, कामतणो अन्निलाख ॥ ते देखी मन पीगले, अग्निमुखें जिम लाख ॥ सु०॥ ७॥ श्म नाटक कीधुं घगुं, कीधा वचन विलास ॥ चित मुनिनुं चूकाववा, श्म की, षटमास ॥ सुण ॥ 6 ॥ नेत्र नासाग्रे स्थापियां,
Jain Educ
a
tional
For Personal and Private Use Only
andiorary.org